: १२: आत्मधर्म: १९८
चाहीए छीए; आपना सिवाय बीजा कोईनी पण उपासना करवा अमे नथी चाहता. ‘आ
गुरुजनोनो प्रसाद छे अथवा आ पिताजीनो प्रसाद छे’–एम आ जगतमां लोको उपचारथी बोले
छे, परंतु आपना प्रसादथी अमे तो तेनो अनुभव करी चूकया छीए. आपने प्रणाम करवामां
तत्पर, आपनी प्रसन्नता चाहनारा अने आपना वचनोना किंकर एवा अमारुं गमे ते थाओ
परंतु अमे बीजा कोईनी उपासना करवा चाहता नथी.–आम होवा छतां भरत अमने प्रणाम
करवा माटे बोलावे छे, तो आमां तेनो मद कारण छे के बीजुं कांई, ते अमे जाणता नथी. हे देव!
सदाय आपने ज भक्तिपूर्वक प्रणाम करवाना अभ्यासना रसथी अमारुं शिर मस्त थई रह्युं छे,
ते हवे बीजा कोईने प्रणाम करवामां मानतुं नथी.–शुं मानसरोवरमां रहेनारो राजहंस कदी
खोबोचियानुं सेवन करशे? आकाशगत स्वच्छ जळने पीनारो चातक प्यासो होवा छतां शुं सुका
सरोवरनुं मलिन जळ पीशे?–नहीं; तेम आपना चरणकमळना परागथी जेनुं मस्तक रंगायेलुं छे
एवा अमे, आपनाथी भिन्न (आप्त सिवाय) बीजा कोईने प्रणाम करवा समर्थ नथी.
ऋषभदेवप्रभुना पुत्रो कहे छे: हे स्वामी! जेमां बीजा कोईने प्रणाम नथी करवा पडता, अने जे
भयथी रहित छे एवी वीरदीक्षा–जिनदीक्षा लेवा माटे अमे आपनी समीप आव्या छीए. माटे हे
देव! जे मार्ग अमने हितकर होय अने सुखदातार होय ते बतावो. जेथी आ लोकमां तेमज
परलोकमां पण अमारी वासना आपनी भक्तिमां अत्यंत द्रढ थई जाय. हे नाथ! मानभंगना
भयथी रहित योगीओ जेम निर्भयपणे वनमां सिंह साथे विचरे छे तेम अमे विचरीए, अने
मानभंगना भयथी दूर एवी आपनी पदवीने अमे पामीए–एवो मार्ग अमने बतावो.–आम
कहीने ते बधा राजकुमारो विनयपूर्वक प्रभुसन्मुख हाथ जोडीने ऊभा.
ते राजकुमारोने मोक्षमार्गमां स्थित करता थका भगवान ऋषभदेव दिव्य ध्वनि द्वारा आ
प्रमाणे हितोपदेश देवा लाग्यां: हे पुत्रो! उत्तम शरीर अने उत्तम गुणोने धारण करनारा एवा तमे
बीजाना सेवक क््यांथी थई शको? आ विनाशी राज्यथी अने चंचळ जीवनथी शुं साध्य छे? आ
ऐश्चर्य अने सेना वगेरेने शुं करवुं छे? ईंधन समान धनथी, के विष जेवा विषयोथी शुं प्रयोजन छे?
हे पुत्रो! संसारमां तमे जेनुं कदी आस्वादन न कर्युं होय एवो शुं कोई पण विषय बाकी छे?–आ
बधुंय तमे अनेकवार भोगवी लीधुं छे,–एनाथी कदी तृप्ति थवानी नथी. शस्त्र तो जेमां मित्र छे, पुत्र
वगेरे जेमां शत्रु थई जाय छे अने सर्वभोग्य एवी पृथ्वी जेमां स्त्री छे–एवा राज्यने धिक्कार हो!
ज्यां सुधी पुण्यनो उदय छे त्यां सुधी राजश्रेष्ठ भरत आ भरतक्षेत्रनुं राज्य करशे, अंते तो भरत
पण आ विनश्वर राज्यनो त्याग करशे. माटे आवा अस्थिर राज्यने अर्थे कलेश करवो व्यर्थ छे. तमे
धर्मरूपी महावृक्षना ए रत्नत्रयरूपी फूलने धारण करो के जे कदी करमातां नथी अने जेना उपर
मोक्षरूपी महाफळ आवे छे. जे बीजानी आराधनारूप दीनताथी रहित छे,–उलटुं बीजा पुरुषोवडे जेनी
आराधना कराय छे एवी आ मुनिदशा ज तमारा जेवा उत्तम पुरुषोना माननी रक्षा करनार छे; जेमां
दीक्षा ए ज रक्षा छे, गुणो ए ज सेवक छे अने शुद्धपरिणतिरूप प्राणप्यारी स्त्री छे–ए रीते सर्व
प्रशंसनीय सामग्रीवाळुं तपरूपी राज्य ज उत्कृष्ट राज्य छे,–माटे हे पुत्रो! बीजा राज्यनो मोह छोडीने
आ तपरूपी राज्यने ज तमे धारण करो.
भगवानना आवा वचनो सांभळीने ते बधाय राजकुमारो परम वैराग्य पाम्या...अने साक्षात्
भगवान ऋषभदेव द्वारा महादीक्षा धारण करीने मुनि थया...नूतन दीक्षाथी ते मुनिवरो अतिशय
शोभता हता. शुद्धनयवडे समीप आवेली ए दीक्षारूपी सखीने पामीने ते राजकुमारो अंतःकरणमां
सुख पाम्या. त्यारबाद ते राजर्षिओ जिनकल्प नामना सामायिक चारित्रमां स्थिर थया....तेमना
ज्ञाननी विशुद्धता वधवा लागी....वैराग्यनी चरम सीमाने पामेला ते तरुण राजर्षिओए राजलक्ष्मी
छोडीने तपलक्ष्मीने वश करी....मोक्ष–