Atmadharma magazine - Ank 198
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: १४: आत्मधर्म: १९८
प्रगट करी, तथा जिनेन्द्र भगवाननी सेवा करवामां जेओ सौथी मुख्य हता, एवा भगवान
ऋषभदेवना पुत्रो अमारुं सर्वेनुं कल्याण करो. ते प्रसिद्ध श्रीमान् भरत पोताना दूतो द्वारा जेमने
नमावी न शक््यो अने जेओए निर्वाणसाम्राज्यनी प्राप्ति माटे पोताना पिता श्री जिनेन्द्रदेवनो
आश्रय लीधो ते मुनिवरो अमारा सर्वेना पापोनो नाश करो.
त्यारबाद ते बधा मुनिवरो चैतन्यध्यानमां लीनतावडे केवळज्ञान प्रगट करे छे, अने ते ज भवे
मोक्षसाम्राज्य प्राप्त करे छे....तेमने अमारा नमस्कार हो.
आ रीते बाहुबली सिवायना बीजा भाईओए तो जिनेन्द्रदेवना शरणमां जईने दीक्षा लई
लेवाथी तेमनी साथेनो प्रश्न तो उकेलाई गयो. हवे बाकी रहेला बाहुबली साथेनो प्रश्न उकेलवा भरत
शुं करे छे.....अने तेनुं अंतिम परिणाम शुं आवे छे?–ते हवे पछी जोईशुं.
(–महापुराणना आधारे)
आत्मा देहथी ने विकारथी
छूटा रहे छे पण पोताना
स्वभावरूप ज्ञानमात्र भावने ते
कदी छोडतो नथी. जेम साकर
मेलने छोडे छे पण मीठासने नथी
छोडती, जेम अग्नि धूमाडाने छोडे
छे पण उष्णताने नथी छोडतो,
तेम चैतन्यमूर्ति आत्मा रागादि
विकारभावोने छोडे ते पण
पोताना ज्ञानभावने कदी छोडतो
नथी. माटे ज्ञानभाववडे तारा
आत्माने लक्षमां लईने आत्मानी
प्रसिद्धि कर......आत्मानो अनुभव
कर.
निजभवने छोडे नहि, परभाव कंई पण नव ग्रहे,
जाणे जुए जे सर्व ते हुं,–एम ज्ञानी चिंतवे.