: ४: आत्मधर्म: १९८
पांच करोड मुनिवरोना मुक्तिधाम
पावागढ–सिद्धक्षेत्रमां
पू. गुरुदेवनुं प्रवचन
(वीर सं. २४८प: पोष सुद आठम)
दक्षिण तीर्थयात्रा निमित्ते पू. गुरुदेवे सोनगढथी मंगल
प्रस्थान कर्या बाद सौथी पहेलुं तीर्थ श्री पावागढ–सिद्धक्षेत्र
आवेलुं. पांच करोड मुनिवरोनुं मुक्ति धाम पावागढ......त्यांनुं
आ प्रवचन छे. साधक संतो प्रत्येनी तीव्र भक्ति, वैराग्यनी धून
अने तीर्थयात्रानो उल्लास पू. गुरुदेवना आ प्रवचनमां तरी
आवे छे. पावागढ–सिद्धक्षेत्रथी सिद्ध थयेला लव–कुशकुमारनी
अंतरंगदशानुं वर्णन करतां गुरुदेव आ प्रवचनमां कहे छे के:
चैतन्यना विश्वासपूर्वक बंने राजपुत्रो पोते अंतरमां देखेला
मार्गे चाल्या गया...अहा, जुओ तो खरा...ए धर्मात्मानी दशा!
पहाडनो देखाव पण केवो छे!! अहीं आवतां रस्तामांथी
पावागढ–पर्वत देखायो त्यारथी लव–कुशनुं जीवन नजरे तरवरे
छे....ने एना ज विचार आवे छे. अहा! धन्य एमनी मुनिदशा!
धन्य एमनो वैराग्य! ने धन्य एमनुं जीवन! जन्मीने पोतानो
अवतार तेओए सफळ कर्यो.
अनंतकाळथी संसारमां परिभ्रमण करता आत्माने शांति केम थाय अने ते मुक्ति केम पामे
तेनी आ वात छे. सिद्धपद ते आ आत्मानुं ध्येय छे. चिदानंदस्वरूप आत्मतत्त्व शुं चीज छे तेने
जाणीने, ने तेनुं ध्यान करीकरीने अनंता जीवो सिद्धपद पाम्या छे. तेनो खरो स्वीकार करतां. “आ
मारा आत्मामां पण एवुं सिद्धपद प्रगट करवानी ताकात छे.’–एम पोताना स्वभावनी पण प्रतीत
थई जाय छे.
जुओ भाई, जीवनमां करवा जेवुं होय तो आ ज छे के आ आत्मा भवसमुद्रमांथी केम तरे?
भवभ्रमणना दुःखोमां डूबेलो आत्मा जे रीते तरे एटले के मुक्ति पामे ते ज उपाय कर्तव्य छे.
चैतन्यस्वभावना आश्रये थतुं जे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप तीर्थ तेना वडे भवसमुद्रथी तराय छे.
आवा तीर्थनी आराधना करीकरीने अनंता जीवो तर्या छे ने मुक्ति पाम्या छे. मुनिसुव्रत भगवानना
तीर्थकाळमां श्री रामचंद्रजीना बे पुत्रो–