Atmadharma magazine - Ank 198
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 6 of 21

background image
चैत्र: २४८६ : प:
लव अने कुश कुमारो–आवा रत्नत्रयतीर्थने आराधीने आ पावागढसिद्धक्षेत्रथी मुक्ति पाम्या छे.
रामचंद्र अने लक्ष्मण ए बंने भाईओ बळदेव अने वासुदेव हता, बंनेने परस्पर अपार स्नेह
हतो....एक वार ईन्द्रसभामां ते बंनेना परस्परना स्नेहनी प्रशंसा थतां बे देवो तेनी परीक्षा करवा
आव्या....ने लक्ष्मणना महेलनी आसपास रामचंद्रना मरणनुं कृत्रिम वातावरण ऊभुं करीने लक्ष्मणने
कह्युं के “श्री राम स्वर्गवास पाम्या छे.” ए शब्दो काने पडतां ज “हा! रा....म” कहेतांक लक्ष्मणजी त्यां
ने त्यां सिंहासन उपर ढळी पड्या ने मृत्यु पाम्या. –जुओ, आ संसारनी स्थिति! हजी रामचंद्रजी तो
जीवता हता परंतु तेना मरणनी वात सांभळतां तीव्र स्नेहने लीधे लक्ष्मणजी मृत्यु पाम्या. आचार्यदेव
कहे छे के अहा, आवा आ क्षणभंगुर अशरण संसारमां जेनुं ध्यान एक ज शरण अने शांतिदातार छे
एवा परम चैतन्यतत्त्वने हुं प्रणमुं छुं....चैतन्यमां वळीने तेना ध्यानवडे सर्व कर्मोने शांत करी नांखुं
छुं.
लक्ष्मणना स्वर्गवास पछी ज्यारे रामचंद्रजी ते वात सांभळे छे त्यारे तुरत ज त्यां आवे छे ने
लक्ष्मणना मृतदेहने नीहाळीने जाणे के ते जीवता ज होय–एम मानीने तेनी साथे वातचीत करे छे......
स्नेहीजनो घणा घणा प्रकारे लक्ष्मणना देहनो अग्निसंस्कार करवा माटे समजावे छे, पण रामचंद्रजी
कोईनी वात सांभळता नथी, ने लक्ष्मणना मृतक शरीरने खभे उपाडीने साथे ने साथे फेरवे छे....तेने
खवराववानी–नवराववानी–सुवडाववानी ने बोलाववानी अनेक चेष्टाओ करे छे, –जो के रामचंद्रजीने
आत्मानुं्र भान छे परंतु अस्थिरताना मोहने लीधे आ बधी चेष्टाओ थाय छे.....ए रीते चेष्टा करतां
करतां दिवसोना दिवसो वीती रह्या छे.
पोताना काकानुं मृत्यु ने पितानी आवी दशा नीहाळीने रामचंद्रजीना पुत्रो लव अने कुश ए
बंनेने संसारथी वैराग्य थाय छे. बंने राजकुमारो नानी उमरनां छे, चैतन्यतत्त्वने जाणनारा छे, ने
महावैराग्यवंत छे. अरे, संसारनी आ स्थिति! त्रण खंडना धणीनी आ दशा!! एम विचारी वैराग्य
पूर्वक बंने कुमारो दीक्षा लेवा तैयार थाय छे....सोनानी पूतळी जेवा बंने कुमारो पिताजी पासे रजा
मांगवा आवे छे. रामचंद्रना खभे तो लक्ष्मणनो देह पड्यो छे ने बंने कुमारो आवीने अति
विनयपूर्वक हाथ जोडीने वैराग्य भरेली वाणीथी रजा मांगे छे: हे पिताजी! आ क्षणभंगुर असार
संसारने छोडीने हवे अमे दीक्षा लेवा मांगीए छीए...अमे दीक्षा लईने धु्रव चैतन्यतत्त्वने ध्यावशुं ने
तेना आनंदमां लीन थईने आ ज भवे सिद्धपदने साधशुं. माटे अमने दीक्षा लेवानी रजा