Atmadharma magazine - Ank 199
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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वैशाख: २४८६ : ७ :
६०. अहा, जुओ आ स्वभाव साथे संबंध जोडवानी, ने पर साथेनो संबंध तोडवानी रीत.–आ
रीतथी संसारथी छूटाय छे ने सर्वज्ञता पमाय छे.
६१. आत्माना ज्ञान–आनंद स्वभावनी प्रतीत करनार जीव पोताना केवळज्ञानने पोतामां ज देखे छे,
केवळज्ञान माटे बीजो कोई पण कारकोनी अपेक्षा तेनी द्रष्टिमांथी छूटी जाय छे.
६२. केवळज्ञान लेवा माटे आत्माने क््यांय बहार नथी जवुं पडतुं, तेमज बीजा सामे जोवुं नथी पडतुं,
पोताथी भिन्न बीजी कोई सामग्री शोधवी नथी पडती; माटे बहारनुं कोई कारण नथी. आत्मा
पोतामां ज रहीने, स्वयमेव छ कारकरूप थईने पोते केवळज्ञानपणे प्रगट थाय छे तेथी ते
‘स्वयंभू’ छे.
६३. जुओ, आ आत्मरस! आत्मरसिक थईने आवा स्वयंभू आत्मानी भावना करतां अपूर्व
आत्मरसनां झरणां फूटे छे.
६४. ‘स्वयंभू’ थयेला आत्मानी प्रशंसा करतां आचार्यदेव कहे छे के अहा! शुद्धोपयोगना सामर्थ्यथी
घातीकर्मोनो क्षय करीने ‘आ’ आत्मा पोते ज ज्ञान अने सुखरूपे प्रसिद्ध थयो छे.
६प. जुओ, आचार्यदेवनी अद्भुत शैलि! आ....आत्मा’ एम कहीने, स्वयंभू–सर्वज्ञ भगवंतोने
पोताना ज्ञानमां प्रत्यक्ष करीने, जाणे के पोतानो आत्मा पण शुद्धोपयोगना बळथी वर्तमानमां
केवळज्ञान अने सुखरूपे परिणमतो होय!–एवी अद्भुत रीते स्वयंभू आत्मानो महिमा गायो
छे.
६६. अहो, आत्मानी ए पळ अने ए क्षणने धन्य छे के जे पळे ने जे क्षणे चैतन्यना
शुद्धउपयोगना सामर्थ्यथी पोते ज परिपूर्ण ज्ञान अने सुखरूपे थईने स्वयंभू थशे....ने ए
ज रीते पूर्ण ज्ञान–आनंदरूपे पोते सादि–अनंतकाळ सुधी रह्या करशे.
६७. ते आत्माओ पण धन्य छे के जेओ स्वयंभू थईने पोताना अतीन्द्रिय ज्ञान ने आनंदमां
सादि–अनंत बिराजी रह्या छे.
६८. ते आत्माओ पण धन्य छे के जेओ एवा पूर्ण ज्ञान ने आनंदनी अपूर्व आराधना करी
रह्या छे.
६९. जेनो उदय ज्ञानप्रकाशथी भरपूर छे अने आनंददायक छे एवा स्वयंभू–सुप्रभातनो उदय
जयवंत वर्तो.
७०. जेमनी ओळखाण करतां आत्माना ज्ञान–आनंद–स्वभावनी ओळखाण थाय छे.... एवा
ज्ञान–आनंदमय स्वयंभू सर्वज्ञ परमात्माने नमस्कार हो.
७१. अन्यकारकोथी निरपेक्ष एवा ‘स्वयंभु’ आत्मानी ओळखाण करावनार...अने ‘स्वयंभू’
थवानो सत्यमार्ग दर्शावनार गुरुदेवने ७१मा मंगलजन्मोत्सव प्रसंगे नमस्कार हो.
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