Atmadharma magazine - Ank 199
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: ६: आत्मधर्म: १९९
स्वयं सुखस्वरूप होय तेने पोताना सुख माटे बीजानी आधीनता केम होय? न ज होय; माटे
स्वयंमेव ज्ञान ने सुखरूपे परिणमनार ‘स्वयंभू’ भगवानने ईंद्रिय वगर ज ज्ञान ने सुख होय छे.
४प. जुओ, आ केवळज्ञाननो महिमा! आवुं केवळज्ञान शुद्धोपयोगना प्रसादथी थाय छे. पण जे
केवळज्ञानने ज न माने तेने शुद्धोपयोगनो प्रसाद केवो?
४६. हुं ज्ञायकस्वभाव छुं–एवी प्रतीत वगर सर्वज्ञनी प्रतीत केवी–अने शुद्धोपयोग क््यांथी?
ज्ञानस्वभाव तरफ वळे तेने ज केवळज्ञाननी प्रतीत थाय छे अने तेने ज शुद्धोपयोगनो प्रसाद
(–केवळज्ञान) प्राप्त थाय छे.
४७. रागरूप शुभोपयोगना प्रसादथी केवळज्ञान तो नथी थतुं परंतु केवळ–कलेश थाय छे. शुभने
प्रसन्न करवा जाशे तो तेनी प्रसादीथी संसारकलेश मळशे; अने शुद्धोपयोगने प्रसन्न करशे तो
तेनी प्रसादीथी केवळज्ञान पामीने स्वयंभू परमात्मा थशे.
४८. जेम केवळज्ञान थवामां शुद्धोपयोग सिवाय बीजुं कोई कारण नथी तेम सम्यग्दर्शन थवामां पण
शुद्धात्मानी प्रतीत सिवाय बीजुं कोई कारण नथी; नवतत्त्वना विकल्पो पण सम्यग्दर्शनमां कारण नथी.
४९. केवळज्ञान माटे शुद्धोपयोग सिवाय बीजाने (–रागादिने) साधन मानवुं ते केवळज्ञाननो
अनादर छे, तेमां शुद्धोपयोगनो पण अनादर छे, धर्मनो अनादरछे, मोक्षनो अनादर छे अने
मोक्षना साधक शुद्धोपयोगी सन्तोनो पण अनादर छे.–आ रीते ते ऊंधी मान्यतामां मोटो
अपराध छे, ते संसारनुं कारण छे.
प०. शुद्धोपयोग ते केवळज्ञाननो राजमार्ग छे. अने शुभराग तो केवळज्ञानने रोकनार लूंटारो छे.
रागने धर्मनुं साधन माने ते राजमार्गनो अपराधी छे; ते ‘राजमार्गी’ नथी पण ‘रागमार्गी’
एटले के संसारमार्गी छे.
प१. शुद्ध अनंतशक्तिवाळा ज्ञानरूपे परिणमवानो आत्मानो स्वभाव ज छे, पछी बीजुं साधन केम
होय? आत्मा स्वभावथी ज केवळज्ञानरूप थतो होवाथी ते ‘स्वयंभू’ छे. पोते स्वयं छ
कारकोरूपे थईने केवळज्ञानरूप थतो होवाथी स्वयंभू छे.
प२. एक तो कुंदकुंदाचार्यदेवनी अद्भुत रचना अने वळी तेना उपर अमृतचंद्रआचार्यनी टीका. –
भरतक्षेत्रमां अजोड छे, पंचमकाळे अमृत रेडाया छे.
प३. आत्मानो ज्ञान अने सुखस्वभाव ते महामंगळ छे, तेनी श्रद्धा करतां आत्मामां अपूर्व
मंगलप्रभातनो उदय थाय छे. सम्यग्दर्शन ते अपूर्व मंगलप्रभात छे.
प४. आत्माना निरपेक्ष ज्ञान अने सुखस्वभावनी जेणे श्रद्धा करी ते पर तरफना भावोथी उदासीन
थईने पोताना स्वरूपमां परिणमवा लाग्यो.
पप. हवे स्वरूपसन्मुख परिणमतां जेम जेम काळ जाय छे तेम तेम केवळज्ञान नजीक–नजीक आवतुं
जाय छे.....एक समयमां एक पर्याय परिणमे छे ने एक समय केवळज्ञान नजीक आवे छे.
प६. आचार्यदेव पोते आवी दशामां झूली रह्या छे ने केवळज्ञानने साधी रह्या छे....तेमना
आत्मामांथी नीकळेला आ न्यायो छे.
प७. ईद्रियो जडस्वरूप छे, तेनाथी ज्ञान थतुं नथी. ज्ञानस्वरूपी आत्मा पोते ज, ईंद्रियोथी
निरपेक्षपणे ज्ञानरूप परिणमीने जाणे छे.
प८. ज्ञाननी जेम आत्मानो सुखस्वभाव पण ईन्द्रियोने आधीन नथी. सिद्धभगवंतो पोताना
स्वभावथी ज सुखरूपे परिणमी रह्या छे.
प९. आत्माना आवा निरपेक्ष ज्ञान अने सुखस्वभावने होंसपूर्वक....आदरपूर्वक...... उल्लासपूर्वक जे
स्वीकारे छे ते जीव आसन्नभव्य छे....अल्पकाळमां ते पोते ईंद्रियोथी पार एवा ज्ञान ने
सुखस्वरूप स्वयंभू–परमात्मा थई जशे.