Atmadharma magazine - Ank 199
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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वैशाख: २४८६ : प :
३०. आचार्यदेव परमकरुणाथी समजावे छे के भाई ईंद्रियविषयोमां तने जे सुखनी कल्पना छे ते
खोटी छे, तेमां सुख नथी, ते ईंद्रियविषयो प्रत्येनी आकुळता तो दुःख ज छे, ए ज रीते
ईंद्रियोना अवलंबनमां अटकतां ज्ञाननो विकास अटके छे.
३१. भाई! एक वार तुं ईंद्रियोथी भिन्न थईने तारा अतीन्द्रिय आत्माने लक्षमां ले तो, ईंद्रियो वगर
ज ज्ञान ने सुख कई रीते होय छे तेनी खातरी तने तारा स्वभावना अवलंबने ज थई जशे;
अने ‘स्वयंभू’ एवा सर्वज्ञना ज्ञान ने सुखनो पण निर्णय तने थई जशे.
३२. ईंद्रियविषयोमां ने रागमां ज सुख कल्पीने तेमां लीनपणे जे वर्ते तेने अतीन्द्रिय आत्माना
सुखनो निर्णय क््यांथी थाय?
३३. रागना एक विकल्पने पण जे जीव सुखनुं के ज्ञाननुं साधन माने छे ते जीव ईंद्रियविषयोमां ज
सुख माने छे; आत्माना ‘स्वयंभू’–स्वभावने ते मानतो नथी.
३४. रागने साधन मान्युं तो, ज्यां राग नहि त्यां सुख नहि–एम तेनी मान्यतामां आव्युं, एटले
राग वगरनुं अतीन्द्रिय वीतरागसुख तेनी श्रद्धामां न आव्युं. अतीन्द्रिय सुखनी ज्यां श्रद्धा पण
न होय त्यां तेनो उपाय क््यांथी करे?
३प. “अहा, शुद्धोपयोग ज मारा ज्ञान ने आनंदनो उपाय छे!”–आवो निर्णय करतां ज जीवनी
परिणति अंतरमां वळे छे, ने बहारमां ऊछाळा मारवानुं अटकी जाय छे.
३६. शुध्धोपयोग एटले शुं? शुद्ध आत्मस्वभावमां उपयोगनी एकाग्रता ते शुद्धोपयोग छे; तेने
रागनुं के विकल्पनुं अवलंबन नथी.
३७. आत्मदशानुं अपूर्व ‘परिवर्तन’ केम थाय? ज्ञान अने रागनुं भेदज्ञान करवाथी, अनादिना
अज्ञाननो नाश थईने अपूर्व सम्यग्ज्ञान प्रगटे छे.–आ ज अपूर्व परिवर्तन छे.
३८. चैतन्यनुं भान करीने पछी जेओ मुनि थया ने अतीन्द्रियरसना अनुभवमां जेमणे जिंदगी
वीतावी–एवा महान संतनुं आ कथन छे.
३९. कोने समजावे छे आ वात?–जेने तृषा लागी छे, आत्मरसनी जेने गरज थई छे, अनादिनी
अज्ञानदशानुं परिवर्तन करीने जे ज्ञानदशा प्रगट करवा मांगे छे अने तेनो उपाय विनयथी पूछे
छे, एवा शिष्यने आचार्यदेव भेदज्ञाननी आ वात समजावे छे.
४०. भाई, तारो ‘स्वयंभू’ आत्मा रागादि परभावोथी अत्यंत निरपेक्ष छे, रागनी अपेक्षा वगर ते
स्वयं ज्ञान ने आनंदरूप थाय छे.
४१. ‘विद्वान’ कोने कहेवाय?–के जे भेदज्ञानवाळो होय तेने; स्वयंभू आत्माने रागथी जुदो जाणीने
जे भेदज्ञान करे ते ज खरो विद्वान छे.
४२. आत्मानुं होवापणुं के थवापणुं परने लीधे जे माने ते जीव ‘स्वयंभू’ आत्माने नहि जाणतो
होवाथी अज्ञानी छे, मूढ छे.
४३. जेम शुद्धोपयोगवडे केवळज्ञान ने पूर्ण आनंद साधवा माटे कोई विकल्पनुं के बाह्य पदार्थनुं
अवलंबन नथी तेम केवळज्ञान थया पछी पण ते आत्माने पोताना पूर्ण ज्ञान के आनंदने माटे
कोई विकल्पनुं के परनुं अवलंबन नथी. परना के विकल्पना अवलंबन वगर ज स्वयमेव ते
आत्मा पूर्ण ज्ञान ने आनंदरूपे परिणमे छे तेथी ते ‘स्वयंभू’ छे.
४४. जे पोते ज स्वयं ज्ञानस्वरूप होय तेने पोताना ज्ञान माटे बीजानी अपेक्षा केम होय?–तेमज जे
पोते ज