
पण अचिंत्य–अलौकिक–अपूर्व छे. चैतन्यतत्त्वनी सन्मुख थतां रागवृत्तिनुं कर्तृत्व रहेतुं नथी,
वीतरागी आनंदना अंशनुं वेदन थाय छे.–आवी भूमिका वगर धर्मनी शरूआत थती नथी. जेम सीरो
करवानी जे रीत होय ते ज रीते सीरो थाय छे, तेम सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्गमां पहेलां
सम्यग्दर्शन होय छे, ने पछी चारित्र होय छे. सम्यग्दर्शन वगर व्रत–तप के चारित्र माने तो तेने
मोक्षमार्गनी विधिनी खबर नथी. बंध–मोक्षबंधथी विकल्पना पक्षमां ऊभो रहीने आत्माना
स्वभावनो अनुभव थतो नथी. ‘हुं शुद्ध छुं–मुक्त छुं’ एवा निश्चयसंबंधीना विकल्पना कर्तृत्वमां
रोकायेलो जीव पण हजी आत्माना अनुभवथी बहार छे. बंध–मोक्षना विकल्पनुं कर्तृत्व छोडीने,
आनंदस्वरूप आत्मामां ढळतां सम्यग्दर्शनरूपी पहेलो धर्म थाय छे.
अनुभवनो उद्यमी छे. रागनी वृत्तिनुं उत्थान ते चैतन्यना अनुभवनो उपाय नथी, पण
चैतन्यस्वभावनी सन्मुखतानो उद्यम ते ज चैतन्यना अनुभवनो उपाय छे.
आत्माने लक्षमां लीधा वगर, परना कर्तापणानी बुद्धिमां अटकेला जीवो अंर्तस्वभावमां क््यांथी
वळे? परना कर्तृत्वनी वात तो दूर रहो, अहीं तो आचार्यदेव अंतरनी सूक्ष्म वात समजावे छे के
चैतन्यना आंगणे आवीने पण ज्यांंसुधी ‘बद्ध–मुक्त’ ना विकल्पमां रोकाय छे त्यांसुधी शुद्धआत्मानो
अनुभव थतो नथी. चैतन्यस्वभावमां बद्ध–मुक्त संबंधी राग–विकल्पो नथी, तेथी ते रागविकल्पोना
कर्तृत्वमां अटकेला जीवने (–भले मुक्त संबंधी विकल्पो होय तो पण) शुद्ध आत्मानो अनुभव थतो
नथी, शुद्धात्मा तरफ वळ्या पहेलां शरूआतमां तेवा विकल्पो होय छे खरा, पण ते विकल्पो साधक नथी
पण बाधक छे, माटे ते विकल्पथी पार थईने अंतर्मुख साक्षात् चिदानंदस्वरूपनो स्वाद लेवो ते
‘समयसार’ छे, ते ज सम्यग्दर्शन छे.....तेमां आत्मानी फतेह छे.
लक्षमां तो ले....आवो ज मारो स्वभाव छे–एम लक्षमां लईने होंसथी हा तो पाड. आ वातनी हा
पाडवाथी पण तारुं अपूर्व कल्याण थशे. जुओ, आ फत्तेहपुरमां आत्मानी फत्तेह थाय.–एवी सरस
वात आवी छे. आत्मा अज्ञानभावे हारी गयो छे, आ समजवाथी आत्मानी फत्तेह थाय छे ने आत्मा
संसारथी छूटीने सिद्धदशा पामे छे.