Atmadharma magazine - Ank 199
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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वैशाख: २४८६ : ११ :
अने
ते अनुभवनो उपाय
राजकोट शहेरमां समयसार गा. १४२–४३–४४
उपरनां महत्वनां प्रवचनोनो सार
जे जीव आत्मानो खरो जिज्ञासु थईने तेना अनुभवनो प्रयत्न करवा
मथे छे, तेने शुं थाय छे ने कई रीते ते स्वानुभवमां पहोंचे छे–ते
संबंधी सुंदर विवेचन जाणवा माटे गुरुदेवनुं आ प्रवचन वांचो
(गतांकथी चालु)
१७. जे जीव आत्मानो खरो जिज्ञासु थईने तेना अनुभवनो प्रयत्न करवा मथे छे तेनी आ
वात छे. अंतरना अनुभवमां वळ्‌या पहेलां अनेक प्रकारना विकल्पोनी जाळ ऊठे छे. परंतु करुं एवी
तो वात नथी, अशुभविकल्पोनी पण वात नथी, शुभ विकल्पोमां पण बहारना विकल्पोनी वात नथी;
अंतरमां ढळवां माटे ‘हुं ज्ञान छुं, हुं नित्य छुं, ईत्यादि जे विकल्पो ऊठे छे ते विकल्पोनी जाळमां ज्यां
सुधी अटवाई रहे त्यां सुधी पण स्वानुभवमां पहोंचातुं नथी. ज्यारे ते विकल्पनी जाळमांथी बहारथी
नीकळीने, ज्ञानभावमां पहोंचे छे त्यारे ते विकल्पोनी जाळ आपोआप समाई जाय छे. बहारथी
खसीने अंतरमां ढळतां वच्चे एवो विकल्पोनो काळ आवे छे, पण ज्ञानलक्षे ते विकल्पोने ओळंगीने
स्वानुभव थाय छे.
१८. विकल्पो वच्चे आवे तेने साधन मानीने अटके, तेना वेदनमां शांति भासे, तेने तो ते
विकल्पोनो ज काळ छे, तेने तो स्वानुभवनो काळ आवतो नथी. पण जे आत्मार्थी छे तेने तो
विकल्पोना काळे पण ज्ञानस्वभावनुं लक्ष भेगुं ज वर्ततुं होवाथी एकला विकल्पोनो ज काळ नथी,
विकल्पोनुं ज अवलंबन नथी, पण ज्ञानलक्षनुं अवलंबन होवाथी ते विकल्पोने ओळंगीने अपूर्व
स्वानुभवनो अवसर प्राप्त करे छे.–चैतन्यना शांतसरोवरमां जईने विकल्पोनी आकुळताना आतापने
शमावे छे. चैतन्यनी आवी अनुभूतिमां एकलो अतीन्द्रिय शांतरस ज वेदाय छे, त्यां विकल्पोनी
विषमता वेदाती नथी.
१९. चैतन्यनुं स्फूरण थतां ज, एटले के अंतर्मुख थईने ज्यां चैतन्यने लक्षमां लीधो त्यां ज,
समस्त विकल्पोनी ईंद्रजाळ दूर थई जाय छे. जेम सिंहनो जराक रणकार थतां ज हरणीयां दूर थई
जाय छे, तेम अंतर्मुख ज्ञानमां ज्यां चिदानंद तत्त्वनुं स्फूरण थयुं के तरत ज समस्त विकल्पो विलय
पामी जाय छे.
२०. ‘हुं ज्ञान छुं–एक छुं, अनेक छुं; नित्य