Atmadharma magazine - Ank 200
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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जेठ: २४८६ : १३ :
जाय छे.....स्वतंत्रतानी वात सांभळी हे जीव! तेनो महिला लाव! श्री कुंदकुंद भगवान समयसारना
बूंगिया वगाडी गाणां गाय छे, ते सांभळी तुं न उछळेए केम बने?
(८७) बधा पदार्थोना उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभावने नक्की करतां, स्वमां के परमां फेरफारनी
बुद्धि न रही पण ज्ञानमां जाणवानुं ज काम रह्युं. एटले ज्ञानमांथी ‘आम केम’ एवो खदबदाट नीकळी
गयो ने ज्ञान धीरुं थईने पोतामां ठर्युं–आमां ज ज्ञाननो परम पुरुषार्थ छे, आमां ज मोक्षमार्गनो ने
केवळज्ञाननो पुरुषार्थ आवी जाय छे. परमां कर्ताबुद्धिवाळाने ज्ञानस्वभावनी प्रतीत नथी बेसती, ने
तेने ज्ञानना स्वभावनो ज्ञायकपणानो पुरुषार्थ पण नथी जणातो.
(८८) हे जीव! ठर रे ठर! भाई, आवा अनंतकाळे दुर्लभ मनुष्य जीवन, तथा तेमां महा
मोंघपवाळा सत्समागम–श्रवण मळ्‌या अने तारो स्वतंत्र स्वभाव छे तेने तुं न माने ते केम चाले?
(८९) विदेहवासी हे सीमंधरनाथ! आप ‘सुवर्णधाम’ मां......अथवा कहो के भक्तोना
अंतरमां पधार्या पछी आ भरतक्षेत्रना जिनेन्द्रशासनमां अनेक अनेक मंगलवृद्धि थई छे. अहो प्रभो!
आपना शुं शुं सन्मान करीए? कई कई रीते आपनुं स्वागत करीए...? हे नाथ! आपना महान
स्वागतना आ पवित्र महोत्सवमां साथ पूराववा आ ‘स्वागत–अंक’ आपने चरणे धरीने आपनुं
स्वागत करीए छीए.....आपनुं बहु बहु सन्मान करीए छीए.....आपने भक्ति–पुष्पोथी वधावीए
छीए.
–अमे छीए, आपना सुवर्णपुरीवासी भक्तो.
(९०) माहात्म्य करवा योग्य दुनियामां कांई होय तो ते सर्वज्ञप्रणीत धर्म अने धर्मात्मा ज छे.
(९१) जे जीवननी एकेक पळ आत्मार्थ खातर ज वीतती होय, जेनी एकेक पळ संसारने
छेदवा माटे छीणीनुं कार्य करी रही होय, जेनी एकेक पळ आत्माने सिद्ध थवानी नजीक लई जती होय
ते जीवन धन्य छे....कृतकृत्य छे.
अहा! संतो एवुं कृतकृत्य जीवन जीवे छे.
जे परम संतोना शरणे एवुं जीवनघडतर थाय छे ते संतो जयवंत हो.
(९२) गामडामां एक खेडूत पूछतो हतो के ‘महाराज! आत्मा अवतारमां रझडे छे, ते
रझडवानो अंत आवे ने मुक्ति थाय–एवुं कांईक बतावो!’
हे भाई! हवे तने जन्म–मरणनो थाक लाग्यो छे? जो थाक लाग्यो होय तो ते जन्म–मरणथी
छूटवा माटे चैतन्यशरणने ओळखीने तेना आश्रये विश्राम कर. जेने भवभ्रमणनो अंतरमां त्रास
लागतो होय ते जीव अंतरमां चैतन्यना शरणने शोधे.
(९३) मारे आत्मानुं कल्याण करवुं छे–एम जेने जिज्ञासा जागी छे, विषय–कषायोथी कंईक
पाछो फरीने जे नव तत्त्वना विचार करे छे ने अंतरमां आत्मानो अनुभव करवा मांगे छे तेनी आ
वात छे. ××× ××× भाई, पूर्वे जे नवतत्त्वना विचार कर्या तेना करतां आ कांईक जुदी रीतनी वात
छे. पूर्वे नवतत्त्वना विचार कर्या ते अभेदस्वरूपना लक्ष वगर कर्या छे, ने अहीं तो अभेदस्वरूपना
लक्षसहितनी वात छे.
(९४) जेने आत्मानुं लक्ष नथी ते गमे तेटला शास्त्रो भणे पण तेने शास्त्रनुं ते बधुं भणतर
मात्र मनना बोजारूप छे, अंतरमां चैतन्य–आनंदनी सुगंध तेने आवती नथी, आत्मानी शांतिनो
अनुभव तेने थतो नथी.
(९प) साधक जीव पण ज्ञानस्वभावनी एकतानी द्रष्टिमां रागनो कर्ता नथी पण ज्ञायक ज छे.
आम, ज्ञायक स्वभावनो निर्णय करवो तेनुं नाम धर्म छे,