Atmadharma magazine - Ank 200
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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जेठ: २४८६ : १९ :
आचार्यदेव समजावे छे के हे जीव! शुद्ध आत्मस्वभावनी प्राप्ति माटे तारा स्वभाव सिवाय बीजा कोई
साधनो साथे तारे खरेखर संबंध नथी. तारा धर्मने माटे शुद्ध अनंतशक्तिवाळो तारो ज्ञानस्वभाव ज
साधन छे.
(१४१) हे धर्मी जीवो! हे मोक्षार्थी जीवो! जो आत्मानी शांति जोईती होय ने भवना फेराथी
छूटवुं होय तो शुद्ध द्रव्यनो आश्रय करीने मोक्षमार्गमां आरोहण करो.
(१४२) जेने शुद्ध आत्मा समजवानी धगश जागी छे एवा जिज्ञासु जीवने प्रश्न ऊठे छे के शुद्ध
आत्मानुं केवुं स्वरूप छे?–आत्मा समजवा माटे जेने अंतरमां खरेखरी धगश अने तालावेली जागे
तेने अंतरमां समजणनो मार्ग थया विना रहे ज नहीं; पोतानी धगशना बळे अंतरमां मार्ग करीने ते
आत्मस्वरूपने पामे ज.
(१४३) साधकदशामां निश्चयनी साथे साथे व्यवहार पण होय छे, छतां साधकनुं (अने सर्वे
शास्त्रोनुं) तात्पर्य तो वीतरागभाव ज छे, ने ते वीतरागभाव निश्चयना आश्रये ज थाय छे, माटे
निश्चयना आश्रये ज खरेखर मोक्षमार्ग छे; साधकने शुभरागरूप व्यवहार होय छे पण ते खरेखर
मोक्षमार्ग नथी, तेने मोक्षमार्ग तरीके कहेवो ते तो मात्र उपचार छे.
* रे भाई! तने एम नथी लागतुं के आत्मामां अंदर जोतां शांतिनुं वेदन थाय छे ने बहारमां
द्रष्टि करतां अशांति वेदाय छे! माटे नक्की कर के शांतिनुं–सुखनुं–आनंदनुं क्षेत्र तारामां ज छे, ताराथी
बहार क््यांय सुख–शांति के आनंद नथी....नथी... ने नथी.
(१४४) सर्वज्ञनो हुकम छे के हे जीव! जो तारे खरेखर मारो आदर करवो होय तो तुं
ज्ञानस्वभावनो आदर कर.....ने रागनो आदर छोड......जे जीवे पोताना ज्ञानस्वभावनी सन्मुख
थईने सम्यक्श्रद्धाज्ञान प्रगट कर्या छे ते जीव सर्वज्ञ थवाना मार्गे चडयो छे, ने तेणे ज खरेखर
सर्वज्ञदेवनो हुकम मान्यो छे.
(१४प) २४८१ वर्ष पहेलां पावापुरीधाममां वर्द्धमान भगवान अभूतपूर्व सिद्धपदने पाम्या...
भव्य जीवोनुं परम ईष्ट अने अंतिम ध्येय एवा मोक्षपदने भगवान पाम्या. ‘अहो! आजे भगवान
अनादि संसारथी मुक्त थईने सादि–अनंत सिद्धपदने पाम्या, ने भगवानना युवराज गौतम गणधर
केवळज्ञान पाम्या’–ए सांभळीने कया मुमुक्षुनुं हैयुं आनंदथी न नाची ऊठे? अहो भगवान!
स्वाश्रयवडे आप ज्ञानसंपदाने पाम्या, अने अमने पण ज्ञानसंपदानी प्राप्तिनो ज उपदेश आपीने
आप मुक्तिपुरीमां सीधाव्या....हे प्रभो! अमे ते उपदेश झीलीने, ज्ञानसंपदा तरफ झूकीने, आपने
नमस्कार करीए छीए, ने आपना पंथे......आपना पुनित पगले आवीए छीए.
“प्रभुजी! तारा पगले पगले मारे आववुं रे.....”
(१४६) वैशाख सुद बीजे रात्रिचर्चामां पू. गुरुदेवे आत्माना छूटकारानी उल्लासभरी वार्ता
कीधी: अहो जे आत्मा छूटकाराना मार्गे चडयो तेना परिणाम उल्लासरूप होय छे.....ने तेने छूटकारानां
ज विकल्पो आवे छे....स्वप्नां पण एनां ज आवे....छूटकाराना प्रसंग प्रत्ये ज एनुं वलण जाय.....
भवबंधनथी छूटकारानो अपूर्व प्रसंग आवतां क््यां मोक्षार्थीनी परिणति आनंदथी उल्लसित न बने?
(१४७) सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे वीतरागी शुद्धभाव ते ज मोक्षनुं कारण छे, अने ते
शुद्धभावनी प्राप्ति जैनशासनमां ज छे, तेनाथी ज जैन शासननो महिमा छे. ए सिवाय राग ते
जैनधर्म नथी, ने तेना वडे जैनशासननो महिमा नथी.
(१४८) “आत्मा तो ज्ञान छे. आ देह......श्वास ने आकुळता–ए त्रणेथी जुदो आत्मा ज्ञान...