Atmadharma magazine - Ank 200
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 21 of 33

background image
: २० : आत्मधर्म: २००
दर्शन...ने आनंद–ए त्रण स्वरूप छे....एनुं लक्ष राखवुं...” (पू. गुरुदेव)
आतमराम अविनाशी आव्यो एकलो...
ज्ञान अने दरशन छे एनुं रूप जो....
बर्हिभावो ते स्पर्शे नहीं आत्मने.....
खरेखरो ए ज्ञायक वीर गणाय जो....
(–पू. बेनश्री बेन)
(१४९) आहा! जैनधर्म शुं चीज छे तेनी वातो लोकोए यथार्थ सांभळी पण नथी. एक क्षण पण
जैनधर्म प्रगट करे तो अनंत भवनो ‘कट’ थई जाय, ने आत्मामां मोक्षनी छाप पडी जाय,–मुक्तिनी
निःशंकता थई जाय.–आवो जैनधर्म छे; माटे हे भव्य! भवना नाश माटे तुं आवा जैनधर्मने भाव.
आ छे जैनशासननो मुद्रालेख–
“दर्शनशुद्धिथी ज आत्मसिद्धि”
(१प०) लौकिक जनो पुण्यने धर्म माने छे पण ते धर्म छे नहि.–ज्यां सुधी शुद्ध आत्माने
श्रद्धा–ज्ञानमां न ल्ये त्यांसुधी आ शरमभरेला जन्म–मरण थी छूटकारो न थाय.
(१प१) हे वत्स! तारो आनंद तारामां ज शोध! तारो आनंद तारामां छे, ते बहार शोधवाथी
नहि मळे. तारुं आखुं द्रव्य ज सर्वप्रदेशे आनंदथी भरेलुं छे,–तेने देख, तो तने तारा आनंदनो अपूर्व
अनुभव थाय. पोतानो आनंद पोतामां ज छे एम जाणीने, हे जीव! तुं आनंदित था.....आत्मा प्रत्ये
उल्लसित था.
(१प२) शिष्यने श्रीगुरुए जे कह्युं तेनी धून लागी छे, निरंतर तेनी झंखना लागी छे, चोवीसे
कलाक वारंवार तेनुं चिंतवन करे छे, आत्माने प्राप्त करवानी धून थई गई छे, तेनी ज चाह छे, अने
ते जरूर आत्माने प्राप्त करे छे.
(१प३) जो निश्चयनय अनुसार वस्तुस्वरूप जाणीने परथी भिन्नता ने स्वमां एकता
(एकत्वविभक्तपणुं) करे तो ज जीवनुं हित थाय छे, माटे जे जीव आ प्रमाणे समजे ते ज
सर्वज्ञवीतराग देवना हितोपदेशने समज्यो छे, ने तेनुं ज हित थाय छे.
(१प४) सौथी पहेलां ज्ञानस्वभावनो निर्णय करवा उपर खास भार मूकीने पू. गुरुदेव कहे छे के–
‘हुं ज्ञानस्वभाव ज छुं’ एवा निर्णय वगर केवळज्ञानीना आत्माने के संतोना आत्माने
खरेखर ओळखी शकाय नहीं. एक वार तो ज्ञानस्वभावनो एवो द्रढ निर्णय थई जवो जोईए के
बस! पछी वीर्यनो वेग स्व तरफ ज वळे.
(१पप) एक वधामणी!!!
भक्तजनोने वधामणी आपतां आनंद थाय छे के तीर्थाधिराज श्री सम्मेदशिखरजीनी यात्राए
जवाना निर्णयनी जाहेरात परमपूज्य गुरुदेव आ (वीर सं. २४८२ ना) श्रावण सुद एकमना रोज
करी दीधी छे. ××× उपर्युक्त वधामणी सांभळतां सौ भक्तजनोने घणो ज हर्ष थयो. हतो ××× पू.
गुरुदेवनी साथे साथे शाश्वत सिद्धिधामने भेटवानी भावनाथी भक्तजनोनां हैया थनगनी रह्यां छे.
(१प६) अमारा साधर्मी बंधुओने एक महान समाचार देतां अमने अत्यंत हर्ष थाय छे के,
आ दसलक्षणी पर्युषण पर्वना पहेला दिवसे भादरवा सुद पांचम ने रविवारना शुभ दिने, परमपूज्य
सद्गुरुदेवना उपदेशथी प्रभावित थईने १८थी २६ वर्षनी नानी नानी उमरना १४ कुमारिका बहेनोए
आजीवन ब्रह्मचर्य–प्रतिज्ञा अंगीकार करी छे......आ ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा जे उदे्शथी धारण करवामां आवी
छे तेनी खास महत्ता छे....
हे जीव! तने क््यांय न गमतुं होय तो तारो उपयोग पलटावी नांख.....ने आत्मामां गमाड!
आत्मामां आनंद भर्यो छे एटले त्यां जरूर गमशे.......