Atmadharma magazine - Ank 200
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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जेठ: २४८६ : २१:
बस! बंने साधक सखीओनुं मिलन थयुं.....पू. गुरुदेवनी छायामां बंने बहेनो एकबीजाना
जीवनमां एवा गुंथाई गया–जाणे के श्रद्धा अने शांतिनुं मिलन थयुं! ...जाणे के वैराग्य अने भक्तिनुं
मिलन थयुं! ....जाणे के आनंद अने ज्ञाननुं मिलन थयुं!
(१प७) समयसारनी पांचमी गाथामां आचार्य कुंदकुंद स्वामी कहे छे के–सर्वज्ञ भगवानथी
मांडीने अमारा गुरुपर्यंतना पर–अपर गुरुओए अनुग्रहपूर्वक अमने उपदेश आप्यो....शुं उपदेश
आप्यो?–‘शुद्धात्म तत्त्वनो उपदेश आप्यो.’ भगवाने अने संतोए प्रसन्न थईने–अमने स्वीकारीने–
अनुग्रहपूर्वक प्रसादीरूपे जे शुद्धात्मतत्त्वनो उपदेश आप्यो ते ज अमे अमारा निजवैभवथी अहीं
दर्शावीए छीए.
(१प८) तीर्थंकरो अने संतोना पुनित चरणोथी पावन थयेली भूमिमां ज्ञानीओ ज्यारे तीर्थयात्रा
करवा जाय छे त्यारे तेमने एम नथी लागतुं के अमे परदेशमां आव्या छीए; पण तेमने तो एवा भावो
उल्लसे छे के अहो! आ तो अमारा धर्मपितानो देश! अमे अमारा धर्मपिताना आंगणे आव्या छीए. हे
नाथ! आप अमारा धर्मपिता छो.....अमे आपना पुत्र छीए.....आपना पगले पगले आपना पुनित पंथे
सिद्धिधाममां आवीए छीए.
(१प९) कोनी आराधना करवी?
आ चैतन्यस्वरूपी आत्मा पोते अनंत शक्तिवाळो देव छे, पोते ज पोतानो परमेश्वर छे, पोते
दर्शन–ज्ञान–आनंदथी परिपूर्ण छे ते ज आराध्य छे; माटे तेनी सन्मुख थईने तेनी ज आराधना
करवी. तेनी आराधनानुं फळ मोक्ष छे.
(१६०) प्रश्न:– कान होवा छतां बहेरो कोण?
उत्तर:– आत्मस्वरूपनी वार्ता न सांभळे ते.
प्रश्न:– आंख होवा छतां आंधळो कोण?
उत्तर:– जिनेन्द्रदेवना दर्शन न करे ते.
प्रश्न:– शास्त्र भण्यो होवा छतां मूर्ख कोण?
उत्तर:– जै चैतन्यतत्त्वने न जाणे ते.
प्रश्न:– आळसु कोण?
उत्तर:– जे तीर्थयात्रा न करे ते.
प्रश्न:– विद्वान कोण?
उत्तर:– जे आत्मविद्याने जाणे ते.
(१६१) फागण सुद सातम: रात्रे बे वागतां तो पू. गुरुदेव तैयार थई गया....ने सिद्ध
भगवंतोने याद करीने, ए शाश्वत सिद्धिधामनी यात्रानो मंगल प्रारंभ कर्यो....पहेली टूंके गुरुदेवे
स्तवन गवडाव्युं हतुं....वच्चे कह्युं के: जुओ, अहींथी अनंता तीर्थंकरो ने मुनिओ मोक्ष पधार्या छे, ते
अनंता सिद्धभगवंतो अत्यारे उपर बिराजी रह्या छे.......××× आजे आ महामंगळ प्रसंग छे......आ
भूमि मंगळ छे, आ काळ पण मंगळ छे....मोक्ष पामनार द्रव्य पण मंगळ छे....ने आजनो भाव पण
मंगळ छे....गुरुदेव सिद्धभगवंतोनो महिमा भक्तजनोने समजावता हता....ने “आवा सिद्धभगवंतोने
तमारा हृदयमां स्थापीने तेमनुं ध्यान करो.”–एवी प्रेरणा भक्तोना हृदयमां जगाडता हता...तीर्थधाम
हजारो भक्तोथी उभराई गयुं हतुं.....गुरुदेवे सुपार्श्वप्रभुना चरणकमळनो भावपूर्वक अभिषेक कर्यो.
छेल्ली प्रार्श्वनाथ भगवाननी टूंके पण बे स्तवनो भक्तिपूर्वक गवडाव्या.....छेल्ले पू. बेनश्रीबेने एक
स्तवन गवडाव्युं.....आ रीते घणा आनंद अने जयकारपूर्वक पू गुरुदेवनी संघसहित शाश्वत
तीर्थधामनी यात्रा पूर्ण थई.
(१६२) बे माणसो भेगा थाय त्यां पूछे छे के “क््यां रहेवुं?” तेम अहीं आत्माने कोई पूछे के