जेठ: २४८६ : २३:
(१७२) “अहो! आत्मामांज आनंद छे, आत्मा ज सिद्धभगवान जेवो छे”–आवा अध्यात्मनुं
श्रवण करावनारा संत मळवा अनंतकाळे बहु दुर्लभ छे. आवा अध्यात्मना श्रवणमां जीवने घणो विनय
अने घणी पात्रता जोईए. (अहीं परम भक्तिपूर्वक गदगद्भावे गुरुदेव कहे छे के–)
अहाहा! भावलिंगी संतमुनि मळे ने आवी अध्यात्मनी वात संभळावता होय तो, एनां
चरण पासे बेसीने......अरे! एनां पगनां तळियां चाटीने आ वात सांभळीए.
(१७३) फागण सुद बीजना दिवसे विदेहना देवाधिदेव सीमंधरनाथ प्रभु सोनगढ पधार्या....
नूतन जिनमंदिरमां भगवानना भव्य दरबारमां रोज रात्रे उल्लासभरी भक्ति थती हती; तेमांय
जन्मकल्याणक वगेरे दिवसोनी भक्तिनो रंग तो कोई जुदी ज जातनो हतो......जाणे पुंडरगिरिमां
आजे ज भगवान जन्म्या छे ने तेमनो जन्मकल्याणक आपणे अहीं उजवीए छीए–एवा आनंदथी
भक्ति थई हती. जिनमंदिरमां भगवानना निजमंदिरनो दरवाजो खुल्लो अने विशाळ थई गयो
होवाथी, भगवानना दरबारनो देखाव घणो ज सुंदर अने महिमावंत लागे छे.....भगवानना
दरबारमां प्रवेशतां ज तेनी शोभा देखीने भक्तोने आश्चर्य थाय छे.
(१७४) अहा, तीर्थंकरो पण दीक्षा वखते चिंतन करे एवी वैराग्यरसमां झूलती आ बार भावनाओ
भावतां कया भव्यने आनंद न थाय? अने कया भव्यने मोक्षमार्गनो उत्साह न जागे? आ भावनाओ
‘भविकजन आनंदजननी’ छे, अने ते सांभळतां ज भव्यजीवोने मोक्षमार्गमां उत्साह ऊपजे छे.
(१७प) मोक्षनो मार्ग “सामायिक” छे. सामायिक कोने वश छे? सामायिक स्व–वश छे एटले
के पोताना आत्मस्वभावने आधीन ज सामायिक छे, ए सिवाय अन्य कोईने वश सामायिक नथी
संपूर्णपणे शुद्धआत्माने ज वश वर्तता सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे वीतरागी सामायिक छे ते ज
कर्मक्षय करीने मोक्ष प्राप्त करवामां कुशळ छे.
(१७६) समकिती धर्मात्माने रत्नत्रयना साधक संतमुनिवरो प्रत्ये एवो भक्तिभाव होय छे के
तेमने जोतां ज तेना रोमरोम भक्तिथी उल्लसी जाय छे...अहो! आ मोक्षना साधक संत भगवानने
माटे हुं शुं शुं करुं?–कई कई रीते एमनी सेवा करुं? अने ज्यां एवा साधक मुनि पोताना आंगणे
पधारे त्यां तो जाणे साक्षात् भगवान ज आंगणे पधार्या.......साक्षात् मोक्षमार्ग ज आंगणे आव्यो.
(१७७) वीर सं. २४८२ना अषाड मासमां गुरुदेवनुं एक अद्भुत प्रवचन आव्युं, ते सांभळीने
प्रसन्न थयेला एक जिज्ञासुए रात्रे तत्त्वचर्चा वखते गुरुदेवने पूछयुं: “आपनी वाणी पण ज्ञानआनंद–
स्वरूप आत्माना धोधथी भरेली अपूर्व नीकळे छे; तो सीमंधर भगवाननी दिव्यध्वनि केवी हशे?
गुरुदेवना हृदयमांथी अतिशय बहुमानपूर्वक उद्गारो नीकळ्या छे: अहो, एनी शी वात! .....
ए तो तो जाणे अमृत! शांतरसनो धोध जाणे वरसतो होय! गणधरो जेवा तो जेना सांभळनारा, ए
वाणीनी शी वात!
* निज स्वरूपनो उपयोग ते सुख छे.
ते आबालगोपाल सौ करी शके छे.
ए विना शांतिनो बीजो कोई उपाय नथी.
(–गुरुदेव)
(१७८) ‘अमे तो स्त्री छीए, अमाराथी शुं धर्म थई शके”–एम न मानवुं.....पूर्वे आत्मानुं
भान करीकरीने अनेक स्त्रीओ एकावतारी थई गई छे, ने अत्यारे पण एवी स्त्रीओ छे....आत्मानुं
भान करे तेने फरीने आवो स्त्री अवतार मळे नहि....माटे सत्समागमे साचुं ज्ञान करीने, आत्माना
स्वसंवेदनवडे