: २४ : आत्मधर्म: २००
पोते पोताना आत्मानुं सुधारी लेवुं–ए ज अमारो उपदेश छे ने ए ज अमारा आशीर्वाद छे.
(१७९) मंगल वधाई!
शाश्वत तीर्थाधिराज श्री सम्मेदशिखरादि तीर्थधामोनी जेम, दक्षिणना तीर्थधामोनी पण पू.
गुरुदेव साथे यात्रा करवानी घणा भक्तोनी भावना हती......जिज्ञासुओने जणावतां आनंद थाय छे
के, पू. गुरुदेव यात्रासंघ साथे मुंबईथी (सं. २०१पना महासुद १० ने मंगळवारना रोज) प्रस्थान
करी दक्षिणना तीर्थधामो श्री मुडबीद्री, श्रवणबेलगोल बाहुबलीजी, कुंथलगीरी, मुक्तागीरी वगेरे अनेक
तीर्थधामोनी यात्राए पधारवाना छे.....
निर्णय ते धर्मनी नक्कर भूमिका छे. आ निर्णय केवो? अंतरमां आत्माने स्पर्शीने थयेलो
अपूर्व निर्णय; ते निर्णय एवो के कदाच देहनुं नाम तो भूली जाय, पण निज स्वरूपने न भूले; देहनो
प्रेमी मटीने ‘आत्मप्रेमी’ थयो. ते निर्णयमां रागनी होंस नथी पण चैतन्यनो उत्साह छे.
(१८०) प्रश्न:– अनादिना अज्ञानी जीवने, सम्यग्दर्शन पाम्या पहेलां तो एकलो विकल्प ज
होयने?
उत्तर:– ना; एकलो विकल्प नथी. स्वभाव तरफ ढळी रहेला जीवने विकल्प होवा छतां ते ज
वखते आत्मस्वभावना महिमानुं लक्ष पण काम करे छे, ने ते लक्षना जोरे ज ते जीव आत्मा तरफ
आगळ वधे छे; कांई विकल्पना जोरथी आगळ नथी वधातुं.......राग तरफनुं जोर तूटवा मांडयुं ने
स्वभाव तरफनुं जोर वधवा मांडयुं, त्यां (सविकल्प दशा होवा छतां) एकलो राग ज काम नथी करतो,
पण रागना अवलंबन वगरनो, स्वभाव तरफना जोरवाळो एक भाव पण त्यां काम करे छे, अने
तेना जोरे आगळ वधतो वधतो, पुरुषार्थनो कोई अपूर्व कडाको करीने निर्विकल्प आनंदना वेदन
सहित सम्यग्दर्शन पामी जाय छे.
(१८१) नवा वर्षनी बोणीमां गुरुदेवे साक्षात् मोक्षमार्गनुं स्वरूप आप्युं..... “स्वस्ति साक्षात्
मोक्षमागर्........” एम कहीने आचार्य भगवान आशीर्वाद आपे छे के हे भव्यजीवो! तमे वीतरागता–
स्वरूप साक्षात् मोक्षमार्गनी आराधना करो.
आ बेसता वर्षनी शरूआतमां, सुखे करीने तीर्थनी शरूआत करवानी वात आवे छे. आचार्य–
भगवान अने ज्ञानी संतो बेसता वर्षे अलौकिक आशीर्वाद आपे छे के तमे सुखे करीने तीर्थनी
शरूआत करो......
* जेणे मोक्षनी आराधनानो भाव प्रगट कर्यो तेणे पोताना आत्मामां रत्नत्रयरूपी दीवडाथी
दीपावली महोत्सव ऊजव्यो. भगवान महावीरना मार्गने पामीने, ज्ञानी गुरुओनां आशीर्वादथी
आपणे पण पोताना आत्मामां रत्नत्रयनी आराधना करीए, अने ए रीते रत्नत्रयरूपी दीपकनी
ज्योतिथी दीपावली महोत्सव ऊजवीए.
(१८२) कोंग्रेस प्रमुख श्री ढेबरभाई ता. ६–४–प७ना रोज सांजे पू. गुरुदेवनी खास
मुलाकात लेवा माटे वीरसेवामंदिर (दिल्ही) मां आव्या हता......तेमणे पू. गुरुदेव साथे लगभग एक
कलाक धार्मिक वातचीत करी हती:
ढेबरभाई: पूर्वे भवनुं ज्ञान अत्यारे थई शकतुं हशे?
गुरुदेव: हा; अत्यारे पण एवा जीवो छे; परंतु आत्मा शुं चीज छे तेनुं ज्ञान करवुं ए मुख्य
चीज छे.
ढेबरभाई: आपना उपदेशनुं बधुं वजन आत्मा उपर छे, अने ए ज भारतनी ब्रह्मविद्या छे.
गुरुदेव: हा; ब्रह्मविद्या–आत्मविद्या ए ज मूळ चीज छे. हिंदमां ए ब्रह्मविद्याना संस्कार छे,
एवा बीजे नथी.....आत्मामां ज आनंद छे ते आत्मा–