Atmadharma magazine - Ank 200
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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जेठ: २४८६ : २प:
मांथी ज ते प्रगट थाय छे.–ए वातना संस्कार आजे हिंदमां ज छे, बीजे क््यांय नथी....ब्रह्मचर्य पाळवुं
ने आत्मज्ञान करवुं ए बे वात उपर अमारुं विशेष वजन छे.
ढेबरभाई: ए बहु सारी वात छे.....आजे तो लोकोने वळगण बहु वधी गई छे. लोकोने आ
वातनी खास जरूर छे.
(१८३) संतो आत्मप्राप्तिना आशीर्वाद आपे छे: हे जीवो! भेदज्ञानवडे स्वतत्त्वने पामीने
आजे ज तमे परम आनंदरूपे परिणमो. ‘पछी करशुं’ एम विलंब न करो, पण आजे ज अनुभवो.
उपग्रणे आजे ज अनुभवो.
(१८४) ××× यात्रासंघ दहींगाव आवी पहोंच्यो....थाकेला यात्रिकोने दहींगावमां सीमंधरादि
वीस विहरमान भगवंतोना एक साथे दर्शन थतां घणो आनंद थयो....हृदय प्रसन्नताथी नाची
ऊठयुं.....(बाहुबली क्षेत्रमां) २८ फूटना विशाळ मनोज्ञ बाहुबली प्रभुना प्रतिमाजी छे.....आ
प्रतिमाजीनुं वजन १८०० मण जेटलुं छे, अने ८०, ००० रूा. तेनी किंमत छे.
(१८प) महा वद त्रीजना रोज सवारमां कुंदकुंदपर्वतनी यात्रा शरू करी......कुंदकुंदप्रभु जे
भूमिमां विचर्या ते पवित्र भूमिमां विचरतां गुरुदेवने घणी भक्ति अने प्रमोदभाव उल्लसता हता....
आ महान ऐतिहासिक यात्राना कायमी स्मरण माटे लगभग १२००० रूा. नुं फंड थयुं हतुं.
(मूडबिद्रिमां) ३प विविध प्रकारनी रत्नमणिना महाकिंमती जिनबिंबोना दर्शन कराव्या.....
गुरुदेव साथे रत्नमय जिनबिंबोना दर्शनथी आनंदित थईने पू. बेनश्रीबेने “वाह वा जी वाह
वा.....” वाळी भक्ति करावी हती.....
महा वद ९नी सवारमां (श्रवणबेलगोलमां) उपर जईने प७ फूट ऊंचा बाहुबलीनाथने
नीहाळतां ज गुरुदेव आश्चर्य अने भक्तिथी स्तब्ध थई गया. खूब ज भावपूर्वक फरीफरीने ए
वीतरागीनाथने नीहाळ्‌या....दर्शन करीकरीने घणो आनंद व्यक्त कर्यो.....गुरुदेवे भावपूर्वक बाहुबली
प्रभुना चरणोनो अभिषेक कर्यो. (उछामणी वगेरेमां दसेक हजारनुं फंड थयुं)
(पोन्नूर) आ पर्वत उपर कुंदकुंदाचार्यदेवनी तपोभूमि छे...उपर महामंगल चरणपादूका छे...
चंपाना वृक्षो छे.....कुंदकुंदप्रभुनी पवित्र तपोभूमिनी यात्रा घणा ज आनंदथी थई–जाणे साक्षात्
कुंदकुंदप्रभुना ज दर्शन थया होय–एवो आनंद भक्तोने आ यात्रामां थयो. (यात्राना स्मरणनिमित्ते
दसेक हजारनुं फंड थयुं.)
(१८६) हे परमवैरागी.....अडग साधक.....बाहुबलीनाथ!
आपश्रीनी परम आत्मसाधना अमारा हृदयमां कोतराई गई छे....कहानगुरुदेव साथे थयेली
आपश्रीनी आ महा ‘मंगलवर्द्धिनी’ यात्रा सर्वे यात्रिकोना जीवनमां आत्महितनी प्रेरणानुं एक
अमरझरणुं बनी जशे. प्रभो! आपना आत्मप्रदेशोमांथी रणकार ऊठी रह्या छे के–
मने लागे संसार असार....
ए रे संसारमां नहीं जाउं.....
नहीं जाउं.....नहीं जाउ रे....
मने ज्ञायक भावनो प्यार.....
ए रे ज्ञायकमां हुं लीन थाउं....
लीन थाउं....लीन थाउं रे......
(१८७) गुरुदेव कहे छे: “जात्रामां घणां तीर्थो जोया...तेमांय बाहुबली भगवाननी मुद्रा तो
जाणे वर्तमान जीवंतमूर्ति होय!–एना सर्व अंगो–