Atmadharma magazine - Ank 200
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म: २००
पांगमां पुण्य अने पवित्रता बंने देखाई आवे छे....एने जोतां तृप्ति थती नथी....अत्यारे आ
दुनियामां एनो जोटो नथी.
(१८८) कोई पूछे के आवुं भेदज्ञान क््यारे थाय?–तेने केटलो वखत लागे?–तो आचार्यदेव
उत्तर आपे छे के हे भाई! जगतनो कोलाहल छोडीने, ने आत्मानो अर्थी थईने जो तुं अंतरमां शुद्ध
आत्माना अनुभवनो प्रयत्न कर तो अंतर्मुहूर्तमां ज तेनी प्राप्ति थई जशे.....वधारेमां वधारे छ
महिना लागशे......छ महिनामां जरूर शुद्धात्मानी प्राप्ति थशे.
(१८९) जेम कोरा घडा उपर पाणीनुं टीपुं पडतां ज ते चूसी ल्ये छे.....तेम दुःखथी अतिसंतप्त
थयेला आत्मार्थी जीवने श्री गुरु पासेथी शांतिनो उपदेश मळतां ज ते तेने चूसी ल्ये छे, एटले के
तरत ज...पोताना आत्मामां परिणमावी दे छे.
(१९०) अहो, ते पवित्र आत्मा जयवंत वर्तो, के जे आत्मा सम्यक्त्वनी प्रभुता सहित छे,
जेनुं ज्ञान पावन छे, जेनी चैतन्यमुद्रा उपर अतीन्द्रिय आनंद व्यापी गयो छे अने जे वैराग्यरूपी
गंभीर समुद्रमां निमग्न छे.
(१९१) हे आत्मार्थी बन्धु!
आत्मसाधनामां जगतना अनेकविध प्रतिकूळ–अनुकूळ संयोगो तो वच्चे आवे ज...एवा प्रसंगे
तारी आत्मार्थिताना जोरे,–तारी सर्व शक्तिने उपयोगमां लईने तारी आत्मसाधनामां अडग
रहेजे......‘आ...त्मा...र्थि.....ता...’ ए एक ज एवुं महान बळ छे के जेनी पासे जगतना कोई बळनी
ताकात चाली शकती नथी. .....खरेखर आत्मार्थीने जगतमां कोई विघ्न छे ज नहीं. आम छतां, हे
जीव! तने मुंझवण थती होय तो, पूर्वना महापुरुषोना जीवनने याद कर....तेमना उदाहरणथी तारा
आत्माने पण आराधनामां उत्साहित कर.
(१९२) धर्मी कहे छे : अमारा आत्माना अतीन्द्रिय आनंद सिवाय आ जगतमां बीजुं कांई
अमने प्रिय नथी. अमारो आनंद अमारा आत्मामां ज समाय छे.
(१९३) ××× आत्मार्थीने अंतरमां एवा भावतरंगो स्फूरे छे के जाणे परिणति उल्लसी
उल्लसीने ‘कारण’ ने भेटती होय! खरेखर, पोतानुं हितकार्य करवाना कामी जीवोने तेनुं वास्तविक
‘कारण’ दर्शावीने संतोए महान उपकार कर्यो छे. ‘न हि कृत मुपकारं साधवो विस्मरन्ति’ ए उक्ति
अनुसार, ते संतोना महान उपकारनुं फरीफरी स्मरण करीने तेओने नमस्कार करीए छीए.
(१९४) आत्मार्थ साधवा माटे साची तत्परता हशे तो जगतमां कोईनी ताकात नथी के तारा
आत्मकार्यमां विघ्न करी शके. ज्यां आत्मार्थीनी साची तत्परता छे त्यां आखुं जगत तेने आत्मार्थनी
प्राप्तिमां अनुकूळ परिणमी जाय छे; ने ते जीव जरूर आत्मार्थने साधी ल्ये छे; माटे हे जीव! जगतमां
बीजुं बधुं भूलीने तुं तारा आत्मार्थ माटेनी साची तत्परता कर.
(१९प) प्रथम जीवने एक धगश जागवी जोईए अने आत्मानी धून लागवी जोईए के मारा
आत्मानुं सम्यग्दर्शन कर्या वगर आ जन्ममरणथी छूटकारो थाय तेम नथी. माटे सर्व उद्यमथी
सम्यग्दर्शन करवा जेवुं छे.
(१९६) गुणमां मोटा गुरु जे प्रमाणे कहे छे ते प्रमाणे शिष्य परिणमी जाय छे,–ए गुरुना
शरणनी खरी सेवा छे...ने एवी सेवाना प्रसादथी ते शिष्य अंतरमां पोताना आत्मानो अनुभव पामे छे.
(१९७) सम्यग्द्रष्टिनुं हृदय ऊंडु छे, घणी पात्रता वगर ते पकडातुं नथी. अहा! ज्ञानी तो
महावैराग्यनुं पूतळुं छे....एना रोमे रोमे–चैतन्यना प्रदेशे प्रदेशे रागथी उदासीनता परिणमी गई छे,
ते समकिती–