जेठ: २४८६ : २७:
हंस.....चैतन्यबागमां निजानंदनी केली करे छे. एवी दशा केम प्रगटे तेनी आ वात छे.
(१९८).... “हे पिताजी! आ असार संसारने छोडीने हवे अमे दीक्षा लेवा मांगीए छीए.....
अमे दीक्षा लईने धु्रव चैतन्यतत्त्वने ध्यावशुं ने तेना आनंदमां लीन थईने आ ज भवे सिद्धपदने
साधशुं. माटे अमने दीक्षा लेवानी रजा आपो. हे तात! जिनशासनना प्रतापे सिद्धपदने साधवानो जे
अंतरनो मार्ग ते अमे जोयो छे, ते अंतरना जोयेला मार्गे हवे अमे जशुं.”–आम कहीने, जेमना रोमे
रोमे–प्रदेशेप्रदेशे वैराग्यनी धारा उल्लसी छे एवा ते बंने राजकुमारो मुनिदीक्षा लेवा माटे रामचंद्रजीने
नमन करीने वनमां चाल्या जाय छे. अहा! धन्य एमनी मुनिदशा! धन्य एमनो वैराग्य! ने धन्य
एमनुं जीवन!
(१९९) हे सीमंधर भगवान! हे गणधरो! हे संतो! हे कुंदकुंदप्रभु! हे विश्वना सर्वे
धर्मात्माओ!
मारा आंगणे पधारो....पधारो!
(२००) ‘आत्मधर्म’ मासिकना आ बीज सैकानी समाप्ति प्रसंगे हे गुरुदेव! आपना
पवित्र चरणमां नमस्कार करीए छीए ने आपना मंगल आशीर्वादथी सौने ‘आत्मधर्म’ नी
प्राप्ति हो! एवी भावना भावीए छीए.
७१मा जन्मोत्सवना अभिनन्दन सन्देशा
परमपूज्य गुरुदेवनो ७१मो जन्मोत्सव उमराळामां
ऊजवायो, मात्र उमराळामां नहि परंतु भारतभरमां अने भारतनी
बहार पण ज्यां ज्यां भक्तो वसी रह्या छे त्यां सर्वत्र भक्तोना
हृदयमां जन्मोत्सवनी उर्मिओ जागी......अने ठेर ठेरथी जन्मोत्सवना
अभिनंदन बाबत भक्तिभर्या सन्देशा आव्या. नीचेना शहेरोमांथी
लगभग ७१ जेटला सन्देशा आव्या हता.
नैरोबी (आफ्रीका), मोशी (आफ्रीका), रंगुन (बरमा), कलकत्ता,
मद्रास, दिल्ही, मुंबई, ईंदोर, उज्जैन, गुना, धनबाद, न्युदिल्ही, कोचीन,
अमदावाद, जामनगर, डुमस, पालेज, राजकोट, मोरबी, सुरेन्द्रनगर,
वढवाणसीटी, जयपुर, सुरत, जोरावरनगर, आग्रा, जमशेदपुर, गोधरा,
लाठी, पोरबंदर, वींछीया, बोटाद, वांकानेर, गोंडल, तलोद, सोनगढ, रिठद
(विदर्भ), सनावद, डुंगरगढ.
ब्रह्मचर्य प्रतीज्ञा
ता. १८–प–६० ना रोज सोनगढमां पू गुरुदेव समक्ष
वढवाणना भाईश्री पोपटलाल मोहनलाल वोरा तथा तेमना
धर्मपत्नी रंभाबेन, ए बंनेए सजोडे आजीवन ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा
अंगीकार करी छे.
(नोंध:– छेल्ला चारेक वर्षमां पू. गुरुदेव पासे अनेक
भाईओए सजोडे ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा अंगीकार करेल छे, परंतु ते
संबंधी यादी आत्मधर्ममां आपवामां आवी नथी. हवे आ मासथी ते
यादी आपवानुं फरी चालु करेल छे.)