निर्णय करी ज्ञानमां लावो...जे सत्पुरुष छे तेमणे पोताना कल्याण अर्थे सर्व सुखनुं मूळ कारण जे
आप्त अर्हंत् सर्वज्ञ तेनो युक्तिपूर्वक सारी रीते सर्वथी प्रथम निर्णय करी आश्रय लेवो योग्य छे...
सर्वथी प्रथम अर्हंत् सर्वज्ञनो निर्णय करवारूप कार्य करवुं–ए ज श्री गुरुनी मूळ शिक्षा छे.
स्वरूप छे तेवुं ज बधा आत्मानुं स्वरूप छे.
प्रसन्न थईने कहे छे के माग! माग! जे दशा जोईए ते आपवा तैयार छुं. पूर्ण सिद्ध पद माग! हुं आ ज
क्षणे ते तने दउं.–आ रीते जे पर्यायरूपे पोते थवा मागे ते पर्याय स्वभावमांथी प्रगटी शके छे.
जानेका सीधा रस्ता है।
वातो ज करे छे पण तने सर्वज्ञनो निर्णय थयो नथी. जो सर्वज्ञनो निर्णय होय तो पुरुषार्थनी अने
भवनी शंका न होय; साचो निर्णय आवे अने पुरुषार्थ न आवे तेम बने ज नहीं.
एवा लीन छे के शरीरनुं लक्ष नथी, अनंत सिद्धोनी पंक्तिमां बेसीने आत्माना अमृतनो आनंद
भोगवी रह्या छे.....वंदन हो ते साधक संतमुनिने.
मानीश, तेनी होंश न करीश, ते बाधक छे, तेने बाधकपणे जाणीने छोडी देजे अने निश्चय स्वभावना जोरे
आगळ पगलां भरजे; एटले के निश्चय स्वभावनी द्रष्टिना जोरे ज तारी पर्याय क्रमेक्रमे शुद्ध थती जशे.
धर्म ए ज धर्मनुं पहेलुं पगथियुं छे. आ रीते धर्मनुं पगथियुं ते धर्मरूप ज छे, पण अधर्मरूप एवो
शुभभाव ते कदापि धर्मनुं पगथियुं नथी....भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे कह्युं छे के ‘
अनुभव समजी ले. प्रथम धडाके एक वात सांभळी ले के तुं ज्ञायकस्वरूप छो, मुक्त ज छो. तारा स्वतंत्र
स्वभावनी हा लाव...एक वार जुदा चैतन्यस्वभाव समीप आवीने अंर्तद्रष्टिथी जो अने श्रद्धा कर! ते
ज सम्यग्दर्शन छे. मुक्तस्वभावनी हा पाडी, अंदरथी ऊछळीने सत्नो आदर कर्यो ते श्रद्धा ज मोक्षनुं
बीज छे. स्वप्नदशामां पण ते ज विचार, तेनो ज आदर अने तेना ज दर्शन थया करे.