Atmadharma magazine - Ank 201
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म: २०१
अज्ञानी आत्मा पण परनो कर्ता थई शकतो नथी. अज्ञानभावे पण फकत पोताना उपयोगने
रागमां जोडीने ते अशुद्ध उपयोगनो अने योगनो कर्ता थाय छे. आ विकारनुं कर्तृत्व अज्ञानदशामां ज
छे. ज्ञानदशामां ज्ञाता भगवान विकारनो कर्ता केम थाय?–न ज थाय. धर्मीनी द्रष्टिमां ज्ञाता भगवान
ज छे, तेनी द्रष्टिमां रागादि नथी, माटे ते रागादिनो अकर्ता ज छे. आ रीते रागादिनो अकर्ता थईने
परिणमतां ते मुक्ति पामे छे. पहेलां आत्माना आवा स्वभावने द्रष्टिमां लेवो ते मोक्षनो मार्ग छे.
केटलाक कहे छे के अमने कांई समजातुं नथी. आचार्यदेव कहे छे के भाई! जो आ समजवानी
खरी जरूर अंतरमां लागे तो समजाया वगर रहे नहीं.–बीजुं केम समजाय छे?–तो आ केम न
समजाय? भाई, आ समजण विना संसारनी चार गतिमां तें बेहद दुःखो भोगव्यां. आ
चैतन्यतत्त्वनी समजण कर्या सिवाय चार गतिना दुःखथी छूटकारो थाय तेम नथी.
वर्तमानमां अल्पज्ञता तथा विकार वर्ततो होवा छतां धर्मात्मानी द्रष्टिना ध्येयमां निर्विकार
सर्वज्ञस्वभाव वर्ते छे; एटले ते द्रष्टि विकारनुं कर्तृत्व स्वीकारती नथी. धर्मी तो ज्ञानमां ज वर्ततो थको
ज्ञानभावने ज करे छे.
धर्मात्मा संतोए अंतरमां जे साधनथी आत्मशांति साधी, ते ज तेओ बतावी रह्या छे. भाई,
धर्मनो पंथ आ ज छे. धर्मनो पंथ आत्माना स्वभावने स्पर्शीने शरू थाय छे, रागमांथी धर्मनो पंथ
नीकळतो नथी. धर्मीने ज्ञानना काळे राग पण हो भले, पण ते रागथी भिन्नपणे रहीने तेने जाणे छे;
एटले रागना काळे भेदज्ञाननो काळ पण साथे ज वर्ते छे. अज्ञानी रागना काळे रागमां ज तन्मय वर्ते
छे, रागथी भिन्न ज्ञाननी तेने खबर नथी, एटले ते रागनी आकुळताने ज वेदे छे, ज्ञाननी शांति तेने
वेदाती नथी. जेने साची आत्मशांतिनुं वेदन करवुं होय तेणे ज्ञानने अंतर्मुख करीने आत्मा अने
रागनुं भेदज्ञान करवुं–ते ज उपाय छे.
‘बधुं भूली जा!’
जेम कोईने महारोग थयो होय अने तेनुं
ओपरेशन करवानुं होय तो दाकतर तेने कलोरोफोर्म
सुंघाडीने बधुं भूलावी दे छे ने तेना रोगनुं ओपरेशन
करी नांखे छे....तेम आत्माने लागेला मोहरूपी
महारोगनुं ओपरेशन करवा माटे श्री गुरु कहे छे के हे
जीव! एकवार चैतन्यनी सुगंध (–रुचि करीने) आखा
जगतने भूली जा....जगतनुं लक्ष छोड....ने आत्मानुं
लक्ष कर....जगतने भूलीने चैतन्यनी रुचि करतां ज
तारा मोहरूपी रोगनुं ओपरेशन थई जशे.....ने तने
वीतरागी सुख अनुभवाशे.
–प्रवचनमांथी.