श्रावण: २४८६ : ९ :
“शुं जोयुं?”
बाहुबली भगवानना दर्शन–यात्रा बाद एक पंडितजीए गुरुदेवने पूछयुं: महाराज! आपे त्यां
शुं जोयुं?
गुरुदेवे घणाज प्रमोदथी कह्युं: अहा! पुण्य अने पवित्रता बंनेनी अद्भूतता में जोई. एमनो
देदार एवो अचिंत्य छे के एकवार तो नास्तिकने पण श्रद्धा उपजावी. द्ये......एनी मुद्रमांथी ने एके एक
अवयवमांथी पुण्य अने पवित्रता नीतरी रह्यां छे. विश्वनी ए एक अजायबी छे–एनुं घडतर पण
आश्चर्यकारी थई गयुं छे. उभा उभा केवळज्ञाननी साधना कई रीते करी–ते एमनी मुद्रा उपर देखाई
रह्युं छे. त्रण दिवस सुधी दोढ–दोढ कलाक नीहाळवा छतां एम थतुं के हजी जोया ज करीए.–एवी
अचिंत्य ए मुद्रा छे.
–ए पूछनार हता पं० सुमेरुचन्दजी दीवाकर; गुरुदेवनो उत्तर सांभळीने तेओ अति आनंद ने
आश्चर्य पाम्या....ने तेमने लाग्युं के महाराजजीना आ शब्दो लखीने प्रसिद्ध करवा जेवा छे.
आजे एक वर्ष बाद पण ज्यारे ज्यारे ए प्रसंगनी वात नीकळे छे त्यारे त्यारे गुरुदेव एवा
ज प्रमोदथी उपरनी वात कहे छे....ने जाणे बाहुबली भगवाननी सन्मुख ज अत्यारे पोते उभा होय–
एम तेनुं वर्णन करे छे.