Atmadharma magazine - Ank 202
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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श्रावण: २४८६ : ११ :
पंचपरमेष्ठी
प्रत्ये बहुमान
(श्री नियमसार गाथा ७१ थी ७प
उपरनां प्रवचनोमांथी)

धर्मात्माने पोताने चिदानंदस्वरूपना आदरपूर्वक भगवान पंच परमेष्ठी प्रत्ये बहुमान होय छे.
साधकने पोताना आत्मा स्वानुभवथी कांईक प्रत्यक्ष छे अने कंईक परोक्ष छे. निश्चय
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रमां तो पोताना परमद्रष्टि एवा चैतन्यस्वभावने ज नमे छे ने तेनो ज
आदर करे छे; तेने व्यवहारसंबंधी राग छे तेमां भगवान अरिहंतदेव वगेरे पंचपरमेष्ठीनुं बहुमान–
विनय होय छे. अहीं ते पंचपरमेष्ठीनुं स्वरूप कुंदकुंदाचार्यदेव वर्णवे छे,–तेओ पोते त्रीजा परमेष्ठी
पदमां वर्ती रह्या छे ने पंचपरमेष्ठीना बहुमानपूर्वक तेनुं स्वरूप दर्शावे छे.
(१) केवा छे अरिहंत–पंचमेष्ठी?
घनघातिकर्म विहीन ने
चोत्रीश अतिशय युक्त छे,
कैवल्यज्ञानादि परमगुण
युक्त श्री अर्हंत छे. ७१
पहेलां अज्ञानदशामां अथवा छद्मस्थदशामां आत्मा पोताना मिथ्यात्वादि भावकर्मोवडे पोताना
ज्ञानादि गुणनो घात करतो हतो अने ते गुणघातमां घातिकर्मो निमित्त हता. परंतु भगवान
अरिहंतदेवे पोताना चिदानंदस्वरूपमां प्रवेशीने समस्त भावकर्मोनो नाश करीने पोताना केवळ
ज्ञानादि चतुष्टय प्रगट कर्या, ने घातिकर्मोनो घात कर्यो. आ रीते आत्माने परम ईष्टरूप एवा चतुष्टय
प्रगट करीने तेओ परमेष्ठी थया.
ते अरिहंतपरमेष्ठी ज्ञानावरणादि चार घनघाति कर्मोथी रहित छे, अने केवळज्ञानादि चार
परमगुणोथी सहित छे. केवळज्ञानादि चतुष्टय केवा छे?–के त्रण लोकने प्रक्षोभना हेतुभूत छे. अहा!
केवळज्ञाननो अचिंत्यमहिमा त्रणलोकने आश्चर्य पमाडनार छे; अथवा तीर्थंकर भगवानने ज्यारे
केवळज्ञान प्रगटे छे त्यारे त्रणलोकमां आनंदमय खळभळाट छवाई जाय छे. आवा केवळज्ञानमय
अरिहंत परमेष्ठीने ओळख्या वगर व्यवहारचारित्र पण होई शकतुं नथी.
केवळज्ञानादि चतुष्ट ते तो अरिहंतदेवना परमार्थ अतिशय छे, ने व्यवहारथी स्वेदरहितपणुं
वगेरे ३४ अतिशयो छे. अरिहंतदेवना केवळज्ञानादिनुं बहुमान ते