श्रावण: २४८६ : १३ :
न ओळखे ने न नमे तेनी कांई गणतरी नथी. पण जे विद्वान छे, भेदज्ञानी छे, धर्मात्मा छे तेओ
भगवानने ओळखीने भगवानना चरणोमां ढळी पडे छे.
हे पद्मप्रभ जिनेन्द्र! आपनो मोक्ष प्रसिद्ध छे. आपनुं केवळज्ञान अने मुक्ति अमारा ज्ञानमां
प्रसिद्ध थई गया छे. तत्त्वविज्ञानमां आप दक्ष छो–चतुर छो; अने बधुजनोने आपे मोक्षनी शिखामण
आपी छे....आपनी शिखामण–आपनो उपदेश मोक्षने माटे ज छे अमारा जेवा मुनिओ पण आपना
चरणे नमे छे ने आपे उपदेशेला स्वाश्रयी मोक्षमार्गने अनुसरीने मोक्षने साधे छे, तेथी आप मोक्षमार्गना
नेता छो, कर्मना भेदनार छो, ने विश्वना ज्ञाता छो. आ रीते अरिहंत भगवानने ओळखीने तेमनी
स्तुति करी.–आवा अरिहंत भगवान जगतमां जयवंत छे,–सदाकाळ बिराजमान छे.
आ रीते अरिहंत परमेष्ठीनुं स्वरूप बताव्युं; हवे सिद्धपरमेष्ठीनुं स्वरूप बतावे छे:
(२) केवा छे सिद्ध परमेष्ठी?
छे अष्टकर्म विनष्ट,
अष्ट महागुणे संयुक्त छे;
शाश्वत, परम ने लोक–
अग्र बिराजमान श्री सिद्ध छे. ७२.
आ वात तो छे मोक्षमार्गनी; अंतरना शुद्धस्वभावना आश्रये निश्चय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्र प्रगट करीने जे मोक्षमार्गने साधी रह्यो छे तेने साधकपणामां समिति–गुप्ति वगेरे व्यवहार
चारित्र केवुं होय तेनुं आ वर्णन छे. ते व्यवहार चारित्रमां भगवान पंच परमेष्ठी प्रत्ये बहुमाननो
भाव होय छे, तेथी अहीं पंचपरमेष्ठीनुं स्वरूप पांच गाथाओमां वर्णव्युं छे.
सिद्धभगवंतो मोहादि आठेय कर्मोथी रहित छे ने सम्यक्त्व आदि महागुणोथी सहित छे; ते
सिद्धभगवंतो लोकनी टोचे बिराजमान छे. तेओ परम–उत्कृष्ट अने नित्य छे.
हवे टीकाकार कहे छे के अहो! आवा भगवंत सिद्धपरमेष्ठी सिद्धिना परंपरा हेतुभूत छे.
सिद्धिनो परंपराहेतु कोने?–के सम्यग्द्रष्टिने; अंशे साक्षात् कारण (सम्यग्दर्शन आदि) जेणे प्रगट कर्युं
होय तेने ज परंपराहेतुनो आरोप बीजामां आवी शके. जेने सिद्धपदना साचा हेतुनी ज खबर नथी
अने विपरीतहेतु माने छे तेने माटे तो कोई परंपराहेतु पण कहेवातुं नथी अने सिध्धभगवानने पण
ते ओळखतो नथी. सिद्धभगवानने जे खरेखर ओळखे ते तो स्वसन्मुख थाय, अने स्वसन्मुख थईने
मोक्षमार्ग प्रगट करतां तेने सिद्धभगवान पण परंपरा मोक्षना हेतु थया. सिद्धभगवानने जे ओळखतो
ज नथी तेने तो साक्षात् के परंपरा एकेय प्रकारे सिद्धिनो मार्ग प्रगट्यो ज नथी. अने वास्तविकपणे
सिद्धभगवानने जे ओळखे छे तेने अंतर्मुख वलण थईने सिद्धिनो मार्ग प्रगट्या वगर रहेतो नथी, ने
तेमां तेने सिद्धभगवान निमित्त छे ‘निमित्तरूप’ होवा छतां ते सिद्धभगवान शुं कांई करे छे?–ना;
पोताना भावथी ज मोक्षमार्गरूपे परिणमता जीवोने तेओ मात्र निमित्त छे.
सिद्ध भगवाननो आत्मा पण पहेलां संसारदशामां आठ कर्मथी सहित हतो, पछी आठ कर्मने
नष्ट करीने तेओ सिद्ध परमात्मा थया–तेमणे आठ कर्मनो नाश कई रीते कर्यो–के निरवशेषपणे
अंतर्मुखाकार, ध्यानध्येयना विकल्प रहित निश्चय परम शुक्ल ध्यानना बळथी तेमणे आठ कर्मनो
नाश कर्यो. जुओ, आमां सिद्धभगवाननी ओळखाण करावतां साथे साथे ते सिद्ध पदनो उपाय पण
बतावे छे. सिद्धपदनो उपाय कोई रागादि बहिर्मुखभावो नथी, पण संपूर्णपणे अंतर्मुख एवुं परम
शुक्ल ध्यान ज सिद्धपदनो उपाय छे. सहज चिदानंदस्वरूपमां अंतर्मुख थईने तेनुं निर्विकल्प ध्यान ते
ज सिद्धपदनो उपाय छे. आवा उपायथी ते सिद्ध भगवंतोए अष्ट कर्मोने नष्ट कर्या छे.
अष्ट कर्मोने नष्ट करीने तेमणे शुं प्राप्त कर्युं छे! के ते सिद्ध भगवंतो क्षायिक सम्यक्त्व आदि
अष्ट महागुणोथी संयुक्त छे; आठ महागुणोथी तेओ संतुष्ट