श्रावण: २४८६ : ३ :
रक्षाबंधन पर्व: धर्मवात्सल्यनुं महान प्रतीक
रक्षाबंधन पर्व ए जैननुं एक महान ऐतिहासिक पर्व छे. ७००
मुनिवरोनी रक्षानो प्रसंग अने धर्मरक्षानी महान भावना आ पर्व साथे
जोडायेला छे. ७०० मुनिओना संघना अधिपति आचार्य अकंपनस्वामीए
ऊज्जैननगरीमां संघना मुनिओने मौन रहेवानी आज्ञा करी....अने पछी
श्रुतसागर मुनिने वादविवादना स्थाने जईने संघनी रक्षा खातर आखी रात
ध्यानमां ऊभा रहेवानी आज्ञा करी, एमां तेमना हृदयमां वही रहेलुं वात्सल्यनुं
झरणुं देखाई आवे छे, संघ उपर उपद्रवनो संभव जणातां संघनी रक्षा खातर
तेमना हृदयमां भरेलो धर्मवत्सलतानो समुद्र सहेजे उल्लसी जाय छे.
पछी, मधराते दुष्ट मंत्रीओ ज्यारे मुनि उपर प्रहार करवा तैयार थाय
छे त्यारे जैनधर्मनो भक्त यक्षदेव मुनिरक्षा करीने, धर्म अने धर्मात्मा प्रत्येनुं
पोतानुं भक्तिभर्युं वात्सल्य प्रसिद्ध करे छे.
पछी, ए वत्सलता पोतानुं साम्राज्य फेलावती, मिथिलापुर आवीने
आचार्य श्रुतसागरने पोताने आधीन करे छे......वत्सलताने आधीन थयेलुं
तेमनुं हृदय, मुनिओ उपरनो उपद्रव जोतां ज मुनिसंघ प्रत्येनी वत्सलताना
पूरथी एवुं उभराय छे के मौनरूपी किनारो तोडीने ‘हा!’ एवा उद्गारद्वारा ते
वत्सलता बहार आवे छे.....पछी तो महामुनि विष्णुकुमार पण ए वत्सलताना
पूरमां तणाय छे......ने ७०० मुनिओनी रक्षा करवा तत्पर बने छे.
तो बीजी तरफ हस्तिनापुरना श्रावको पण, ज्यांसुधी मुनिवरोनो
उपद्रव दूर न थाय त्यांसुधी अन्नजळनो त्याग करीने, धर्म अने धर्मात्मा
प्रत्येनी पोतानी अजब वत्सलता व्यक्त करे छे–अने अंते ए वत्सलतानो
एवो महान विजय थयो के जेना प्रतापे ७०० मुनिवरोनी रक्षा थई....
जैनधर्मनी मोटी प्रभावना थई....अने मुनिरक्षानो ए दिवस वात्सल्यना
महान प्रतीक तरीके प्रसिद्ध थयो.
आजे पण ठेरठेर ए दिवस ऊजवाय छे....बहेन भाईना हाथे जे
राखडी बांधे छे ते पण वात्सल्यनुं ज एक प्रतीक छे. ज्यां वात्सल्य होय त्यां
रक्षानी भावना होय ज. आ उपरांत “अमारा धर्मनी रक्षा करो” एवी
भावनापूर्वक भक्तजनो जिनमंदिर आदि धर्मस्थानोए पण राखडी बांधे छे,
तेमज धर्म अने धर्मात्माओ प्रत्ये आदरपूर्वक वात्सल्य व्यक्त करे छे.
धर्मात्माने के धर्मनी प्रीतिवाळा जिज्ञासुने, धर्म प्रत्ये अने धर्मधारक
धर्मात्माओ प्रत्ये परमप्रीति जरूर होय छे, एटले आवी प्रीतिरूप वात्सल्य ते
सम्यक्त्वनुं एक खास अंग छे.
आ रीते वात्सल्य साथे संकळायेला धर्मप्रसंगोने अने धर्मात्माओने
याद करीने मुमुक्षुओए भारतभरमां परम वात्सलताना पूर वहाववा
जोईए.
धर्मवत्सल सर्वे संतोने नमस्कार हो!