: ४ : आत्मधर्म: २०२
–परम शांति दातारी–
अध्यात्म भावना
भगवान श्री पूज्यपादस्वामीरचित
‘समाधिशतक’ उपर परमपूज्य सद्गुरुदेव
श्री कानजीस्वामीनां अध्यात्मभावना
भरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार
(‘आत्मधर्म’ नी सहेली लेखमाळा: अंक १९६थी चालु)
(वीर सं. २४८२ अषाड सुद एकम सोमवार: समाधिशतक गा. ४३)
स्वरूपथी च्यूत थईने परमां आत्मबुद्धिथी बहिरात्मा चोक्कस बंधाय छे, अने स्वरूपमां ज
आत्मबुद्धिवाळा अंतरात्मा मुक्त थाय छे–एम हवे कहे छे–
परत्राहम्मतिः स्वस्माच्च्युती बध्नात्यसंशयम्।
स्वस्मिन्नहम्मतिच्युत्वा परस्मान्मुच्यते बुधः।।४३।।
समस्त परद्रव्योथी भिन्न हुं ज्ञायकस्वरूप छुं–एम निर्णय करीने ज्ञायकस्वरूप तरफ जे वळतो
नथी, ने देह–रागादिमां ज आत्मबुद्धि करीने वर्ते छे ते जीव स्वरूपथी भ्रष्ट थयेलो बंधाय छे–एमां
संशय नथी; अने बुधधर्मात्मा पोताना ज्ञानानंदस्वरूपमां ज आत्मबुद्धिथी वर्ते छे, ने परथी च्यूत
थईने स्वरूपमां ठरे छे तेथी ते नियमथी मुक्त थाय छे.
जुओ, स्वतत्त्व ने परतत्त्व बे भाग पाडीने टूंकामां समजाव्युं. स्वद्रव्य तरफ जे वळ्यो ते मुक्त
थाय छे, ने जेणे परद्रव्यने उपादेय मान्युं ते बंधाय छे. परद्रव्याश्रित बंधन अने स्वद्रव्याश्रित मुक्ति,
आ टूंको सिध्धांत छे.
साततत्त्वोमां जीव ते स्वतत्त्व, अजीव ते परतत्त्व; आस्रव ने बंध ते अजीवना आश्रये थता
होवाथी ते अजीव साथे अभेद थया; ने संवर–निर्जरा–मोक्षरूप पर्यायो ते शुध्ध जीवस्वभावना आश्रये
थतो होवाथी जीव साथे अभेद थई. आ रीते शुद्ध पर्याय सहित जीवतत्त्व ते स्वद्रव्य छे ने ते ज
उपादेय छे. अशुद्धता ने अजीव ते बधा परद्रव्य छे ने ते हेय छे. आम बे भाग पाडीने स्पष्ट
समजाव्युं छे. तेमां उपादेयरूप स्वतत्त्वमां जे जे आत्मबुद्धि करे छे ते तो अजीवथी–आस्रवथी ने
बंधनथी च्यूत थईने मुक्ति पामे छे; अने हेयरूप परतत्त्वमां (देहादिमां–रागादिमां) जे आत्मबुद्धि करे
छे ते निजस्वरूपथी च्यूत थईने संसारमां रखडे छे.