Atmadharma magazine - Ank 203
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपद : २४८६ : १३ :
समयसारने–एटले के शुद्ध आत्माने जाणता–देखता–अनुभवता थका मोक्षमार्गने पामे छे, तेओ
मोक्षमार्गी छे, धर्मी छे.
विकल्प ते चैतन्यधामनी मूळ चीज नथी; चैतन्यधाम ते कांई विकल्पनी उत्पत्तिनुं स्थान नथी,
ते तो आनंदनी उत्पत्तिनुं स्थान छे. विकल्पनुं उत्थान चैतन्यधामना आश्रये नथी थतुं, ते विकल्प
चैतन्यनी चीज नथी, ते चैतन्यनुं अंग नथी ने तेना वडे चैतन्यतत्त्व पमातुं नथी; विकल्पनी पक्कड
करनारो चैतन्यतत्वने पकडी शकतो नथी. चैतन्यने पकडवानुं साधन तो निर्विकल्प एवो शुद्धनय छे, ते
चैतन्यनुं ज अंग छे. प्रौढ विवेकवाळा निश्चय वडे भेदज्ञान करीने, चैतन्य अने विकल्पने जुदा करी
नांखवा,–तेमने जुदा करीने चैतन्यमां तो एकाग्र थवुं ने विकल्पने छोडी देवो, ते मोक्षमार्ग साधवानी
रीत छे.
इंद्रना वैभवनो उपयोग ते ईंद्रे करी शकतो नथी केमके ते तो आत्माथी बहारनी चीज छे.
जगतनो कोई पण जीव आत्मा सिवाय बहारनी चीजनो उपयोग करी शकतो नथी. ईंद्रने बहारनो
वैभव घणो छे माटे ते सुखी छे ने नारकीने वैभव नथी माटे दुःखी छे एम नथी. बंनेमांथी कोईपण
आत्माने ते बहारनी चीजो सुखनुं के दुःखनुं साधन नथी. ते उपरांत अहीं तो कहे छे के जे विकल्प छे
ते पण आत्माना चिदानंदस्वभावथी बहारनी चीज छे. ने ते बहारनी चीज अंतरमां चैतन्यसुखनुं
साधन थई शकती नथी.
भाई, तारा सुखनुं साधन तो तारा चैतन्यमां छे. तारा मोक्षमार्गनी शरूआत तारा
चैतन्यमांथी ज थाय छे, बहारथी के रागमांथी तारा मोक्षमार्गनी शरूआत थती नथी. आत्माना
मोक्षमार्गनुं साधन बहारमां तो नथी, रागमां पण नथी, द्रव्यलिंगमां एटले के व्रत–महाव्रतना
विकल्पोमां पण मोक्षमार्गनुं साधन नथी. मोक्षमार्गनुं साधन एक ज छे के शुद्धनयद्वारा
परमार्थचैतन्यस्वरूपने जाणवुं. आ चिदानंदी चैतन्यतत्वने जाण्या वगर किंचित् पण सुख–शांति–
स्वतंत्रता–धर्म के मोक्षनुं साधन थाय नहीं. भगवान समयसारनुं दर्शन ज्ञान अने अनुभवन तो
निश्चय पर आरूढ थवाथी ज थाय छे, तेना सिवाय बीजा कोई साधनथी भगवान समयसारनुं
दर्शन–ज्ञान के अनुभवन थतुं नथी. माटे–
मोक्षार्थी जीवोए अंतरमां
शुद्धनयनां अत्यंत अभ्यासवडे भगवान
समयसार शुद्ध–आत्माने जाणवो–श्रद्धवो
ने अनुभववो. एम करवाथी मोक्षना
उत्तम सुखनी प्राप्ति थशे.
पू. गुरुदेवनुं प्रवचन पूरुं थतां ज हर्षभर्या जयनाद ऊठया :
चैतन्यरसभरपूर ज्ञानसुधाझरती गुरुवाणीनो जय हो.
तृषातुरनी तृषा छीपावनार अमृतझरती गुरुवाणीनो जय हो.