
प्रगट अनुभव आपणो...निमळ करो सप्रेम...रे...
–चैतन्यप्रभु! प्रभुता तमारी चैतन्यधाममां...
–जिनवरप्रभु! पधार्या समोसरणधाममां...
बपोरे आ पदनी धून जमावी हती; तेमां “केवळी भाखे एम.”...ए पदने स्थाने नीचे मुजब पद
फेरवी फेरवीने तेनुं रटण करता हता–
परम दिगंबर संतमुनि अत्यारे उपरथी नीचे पधारीने दर्शन आपे तो केवा महाभाग्य! कुंदकुंदभगवान
जेवा कोई मुनिराज कयांकथी आकाशमार्गे अहीं आवी चडे ने तेमना दर्शन थाय–तो केवुं धनभाग्य!!–
आवी घणी घणी भावनाओ गुरुदेवना अंतरमां उल्लसती हती.–ए दिवस हतो–श्रावण सुद पांचम.
साधु दिगंबर नगन निरम्बर, संवर भूषणधारी...वे मुनि...(१)
कंचन–काच बराबर जिनके, ज्यों रिपु त्यों हितकारी,
महल मसान, मरन अरू जीवन, सम गरिमा अरू गारी...वे मुनि...(२)
सम्यक्ज्ञान प्रधान पवन बल, तप पावक परजारी,
शोधत जीव–सुवर्ण सदा जे, काय–कारिमा टाळी...वे मुनि...(३)
जोरी जुगल कर भूधर विनवे, तिन पद ढोक हमारी,
भाग उदय दरसन जब पाउं, ता दिनकी बलिहारी...वे मुनि...(४)