Atmadharma magazine - Ank 203
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 25

background image
: १४ : आत्मधर्म : २०३
रटन...अने...भावना...
पू. गुरुदेव घणीवार अध्यात्मरसनी मस्तीपूर्वक अति वैराग्य भरेली हलकथी नीचेना पद फरी
फरीने गाय छे–
ज्यां चेतन त्यां सर्व गुण...केवळी भाखे एम...
प्रगट अनुभव आपणो...निमळ करो सप्रेम...रे...
–चैतन्यप्रभु! प्रभुता तमारी चैतन्यधाममां...
–जिनवरप्रभु! पधार्या समोसरणधाममां...
गुरुदेवने आ पद घणुं प्रिय छे...घणी वखत एकला एकला तेओ आ पद बोलता होय छे ने
तेना भावोनुं ऊडुं रटण करता होय छे. एकवार तो बहार खुल्ला मेदानमां एकांतमां बेठा बेठा
बपोरे आ पदनी धून जमावी हती; तेमां “केवळी भाखे एम.”...ए पदने स्थाने नीचे मुजब पद
फेरवी फेरवीने तेनुं रटण करता हता–
“जिनवर बोले एम...” “तीर्थंकर भाखे एम”
“सर्वज्ञ भणे छे एम” “प्रभुजी बोले छे एम”
“भगवंत भाखे एम” “दिव्यध्वनि कहे छे एम...”
“अरिहंत कहे छे एम” “मुनिवरो कहे छे एम...”
–आ पदनुं मंथन करतां करतां गुरुदेवना हृदयमां एक बीजी भावना पण जागी ऊठी : ए
भावना हती–मुनिवरोना दर्शननी! ‘अहा! अत्यारे कोई मुनिराजना दर्शन थाय तो केवुं सारुं! कोई
परम दिगंबर संतमुनि अत्यारे उपरथी नीचे पधारीने दर्शन आपे तो केवा महाभाग्य! कुंदकुंदभगवान
जेवा कोई मुनिराज कयांकथी आकाशमार्गे अहीं आवी चडे ने तेमना दर्शन थाय–तो केवुं धनभाग्य!!–
आवी घणी घणी भावनाओ गुरुदेवना अंतरमां उल्लसती हती.–ए दिवस हतो–श्रावण सुद पांचम.
ता दिनकी बलिहारी
कवि : भूधरदासजी राग : मल्हार
वे मुनिवर कब मिलि है उपगारी...ााटेकाा
साधु दिगंबर नगन निरम्बर, संवर भूषणधारी...वे मुनि...(१)
कंचन–काच बराबर जिनके, ज्यों रिपु त्यों हितकारी,
महल मसान, मरन अरू जीवन, सम गरिमा अरू गारी...वे मुनि...(२)
सम्यक्ज्ञान प्रधान पवन बल, तप पावक परजारी,
शोधत जीव–सुवर्ण सदा जे, काय–कारिमा टाळी...वे मुनि...(३)
जोरी जुगल कर भूधर विनवे, तिन पद ढोक हमारी,
भाग उदय दरसन जब पाउं, ता दिनकी बलिहारी...वे मुनि...(४)