Atmadharma magazine - Ank 203
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपद : २४८६ : १७ :
छोडीने आवा चैतन्यनिधानने कोण अंगीकार न करे? ऋषभदेव भगवाननी स्तुति करतां
पद्मनंदीमुनिराज कहे छे के अहा नाथ! केवळज्ञान पामीने दिव्यध्वनिवडे आपे चैतन्यनां निधान
खुल्लां करीने अमने बताव्या, जगत पासे आपे चैतन्यनिधान खुल्लां मुकया.–तो हवे कयो बुद्धिमान
भव्यात्मा छे के जे राज्य वगेरे वैभवने तूच्छ तरणां जेवा समजीने न छोडे? एवो कोण छे के जे
आवा चैतन्यनिधानने छोडीने बाह्यवैभवनो आदर करे? बाह्यवैभव छोडीने आवा अचिंत्य
चैतन्यनिधानने कोण अंगीकार न करे? प्रभो! आपे बतावेला चैतन्यनिधानने ओळखतां तेमां
सन्मुखता थाय छे, चैतन्यनिधाननी महत्ता पासे जगत आखानो वैभव तूच्छ भासे छे.
* जेने स्वतंत्र थवुं होय, सुखी थवुं होय तेणे सुखना धाम एवा आत्मतत्त्वने जाणवुं जोईए.
आत्मा पोते ज सुखनुं धाम छे केमके तेनामां सुखशक्ति छे. सुख वगेरे अनंतशक्तिनो धरनार आत्मा
छे, तेनी शक्तिओनुं आ वर्णन छे.
* दसप्राणथी जीववुं ते व्यवहार जीवत्व छे, ते खरेखर आत्मानो स्वभाव नथी, व्यवहार
जीवत्व जेटलो आत्मा नथी. आत्मा तो चैतन्यप्राणथी त्रिकाळ जीवनार छे, ते ज तेनुं खरूं जीवत्व छे.
रागथी आत्माने लाभ मानवो ते तो आत्माने रागमय मानीने तेना चैतन्यजीवनने हणवा जेवुं छे.
अने, चैतन्यस्वभावरूप जीवत्वने जे जाणे छे ते धर्मात्मा चैतन्यमय जीवन जीवे छे ने रागने हणी
नांखे छे. आवुं जीवन ते ज साचुं जीवन छे. नेमिनाथ प्रभुनी स्तुतिमां कहे छे के
तारुं जीवन खरुं तारुं जीवन...
जीवी जाण्युं नेमनाथे जीवन...
–केवुं जीवन? चिदानंद स्वभावनी सन्मुख थईने ज्ञान–आनंदमय वीतरागी जीवन; ए ज खरुं
जीवन छे ने ते ज प्रशंसनीय छे. भगवंतो एवुं जीवन जीवे छे; ने दरेक आत्मामां एवा जीवत्वनी
शक्ति छे. (चालु)
ताराथी थई शके तेवी आ वात छे
ज्ञानीओ कहे छे के आत्मानी समजण करो...त्यां
एम न जाणो के, अरे! हजी तो हुं बाळक छुं, अमे तो
मंदबुद्धि छीए, अमे तो वृद्ध थई गया, अमे तो हजी
जुवान छीए, अमारा माथे घणां कामनो बोजो छे–तेथी
अत्यारे आत्मानी समजण कयांथी थाय?–भाई रे! बधा
आत्मा स्वभावे सरखां छे, कोई आत्मा नानो के मोटो
नथी, अने परनां कामनो बोजो कोई आत्मा उपर छे ज
नहि. केमके आत्मा परनां काम करी ज शकतो नथी;
आत्मानी समजण करवी ए ज सौए करवा जेवुं मुख्य
काम छे, ने जीव ज्यारे करवा मांगे त्यारे थई शके एवुं
ए काम छे. माटे “अमाराथी आ न थई शके” एवी बुद्धि
छोडीने, अंदरथी आत्मानी समजणनो जिज्ञासु थईने
तेनो प्रयत्न कर,–जेथी जन्ममरणना दुःखसमुद्रमांथी तारो
उद्धार थाय...
–पोरबंदरना प्रवचनमांथी