
पद्मनंदीमुनिराज कहे छे के अहा नाथ! केवळज्ञान पामीने दिव्यध्वनिवडे आपे चैतन्यनां निधान
खुल्लां करीने अमने बताव्या, जगत पासे आपे चैतन्यनिधान खुल्लां मुकया.–तो हवे कयो बुद्धिमान
भव्यात्मा छे के जे राज्य वगेरे वैभवने तूच्छ तरणां जेवा समजीने न छोडे? एवो कोण छे के जे
चैतन्यनिधानने कोण अंगीकार न करे? प्रभो! आपे बतावेला चैतन्यनिधानने ओळखतां तेमां
सन्मुखता थाय छे, चैतन्यनिधाननी महत्ता पासे जगत आखानो वैभव तूच्छ भासे छे.
छे, तेनी शक्तिओनुं आ वर्णन छे.
रागथी आत्माने लाभ मानवो ते तो आत्माने रागमय मानीने तेना चैतन्यजीवनने हणवा जेवुं छे.
नांखे छे. आवुं जीवन ते ज साचुं जीवन छे. नेमिनाथ प्रभुनी स्तुतिमां कहे छे के
जीवी जाण्युं नेमनाथे जीवन...
शक्ति छे. (चालु)
मंदबुद्धि छीए, अमे तो वृद्ध थई गया, अमे तो हजी
जुवान छीए, अमारा माथे घणां कामनो बोजो छे–तेथी
अत्यारे आत्मानी समजण कयांथी थाय?–भाई रे! बधा
आत्मा स्वभावे सरखां छे, कोई आत्मा नानो के मोटो
नथी, अने परनां कामनो बोजो कोई आत्मा उपर छे ज
आत्मानी समजण करवी ए ज सौए करवा जेवुं मुख्य
काम छे, ने जीव ज्यारे करवा मांगे त्यारे थई शके एवुं
ए काम छे. माटे “अमाराथी आ न थई शके” एवी बुद्धि
छोडीने, अंदरथी आत्मानी समजणनो जिज्ञासु थईने
तेनो प्रयत्न कर,–जेथी जन्ममरणना दुःखसमुद्रमांथी तारो
उद्धार थाय...