Atmadharma magazine - Ank 203
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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भाद्रपद : २४८६ : १९ :
शक्तिना
भानपूर्वकनी
भक्ति
पद्मनंदिपच्चीसीना ऋषभजिनस्तोत्र
उपर पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी
वीर सं. २४८६ श्रावण वद १२
भगवाननी भक्ति करतां प्रमोदथी साधक कहे छे
के अहा नाथ! आपने मारा उपर वात्सल्य छे; मारा
उपर आपने एवुं वात्सल्य छे के आप मारी मुक्तिने
आपना ज्ञानमां देखी रह्या छो. हे भगवान! अमे
आपना पुत्र छीए. अनंतगुणना निधान आपे खुल्ला
कर्या छे...आपने ओळखतां अमने अनंत गुणनो निधान
आत्मा देखाणो.. एटले आपना प्रसादथी ज अमने
निजधामनी प्राप्ति थई.
आ ऋषभदेव भगवाननी स्तुति छे. आत्मामां अनंत शक्ति छे ते व्यक्त करीने जे परमात्मा
थया–तेमनी भक्तिनुं आ वर्णन छे.
शास्त्रमां तो कहे छे के सर्वज्ञ भगवाननी कृपानुं फळ मोक्ष छे.–कई रीते? भगवान सर्वज्ञ
परमात्माने ओळखतां अंतरमां पोताना चैतन्यनिधाननी पण ओळखाण थई, एटले सर्वज्ञ
परमात्मा प्रत्येनी भक्तिथी धर्मात्मा कहे छे के हे नाथ! अमारा उपर आपनी कृपा थई, आपनी
कृपाना प्रसादथी अमने चैतन्यनिधान मळ्‌यां, आपना प्रसादथी ज अमे धर्म अने मोक्षमार्ग पाम्या. हे
नाथ! अमारा जेेवा प्राणीओ उपर आप परम वत्सलताना धारक छो.–आ रीते धर्मात्माने निज
शक्तिनी ओळखाणपूर्वक भगवाननी भक्ति होय छे. आम “शक्ति” अने “भक्ति”नी संधि छे.
आपणे पण सवारे ४७ शक्ति अने बपोरे आ ऋषभदेवनी भक्ति–एम बराबर मेळ छे.
चैतन्यशक्तिनुं जेने भान थाय तेने सर्वज्ञ परमात्मा प्रत्ये भक्ति आव्या विना रहे नहि. श्री
पद्मप्रभमलधारीदेव नियमसारमां कहे छे के, भवभयने हरनारा एवा भगवान प्रत्ये जेने भक्ति
नथी ते भवसमुद्रनी मध्यमां