
उपर आपने एवुं वात्सल्य छे के आप मारी मुक्तिने
आपना ज्ञानमां देखी रह्या छो. हे भगवान! अमे
आपना पुत्र छीए. अनंतगुणना निधान आपे खुल्ला
कर्या छे...आपने ओळखतां अमने अनंत गुणनो निधान
आत्मा देखाणो.. एटले आपना प्रसादथी ज अमने
निजधामनी प्राप्ति थई.
परमात्मा प्रत्येनी भक्तिथी धर्मात्मा कहे छे के हे नाथ! अमारा उपर आपनी कृपा थई, आपनी
कृपाना प्रसादथी अमने चैतन्यनिधान मळ्यां, आपना प्रसादथी ज अमे धर्म अने मोक्षमार्ग पाम्या. हे
नाथ! अमारा जेेवा प्राणीओ उपर आप परम वत्सलताना धारक छो.–आ रीते धर्मात्माने निज
शक्तिनी ओळखाणपूर्वक भगवाननी भक्ति होय छे. आम “शक्ति” अने “भक्ति”नी संधि छे.
आपणे पण सवारे ४७ शक्ति अने बपोरे आ ऋषभदेवनी भक्ति–एम बराबर मेळ छे.
नथी ते भवसमुद्रनी मध्यमां