Atmadharma magazine - Ank 204
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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अनंत शक्तिसंपन्न
चैतन्यधाम

–तेने ओळखी, तेनो अचिंत्य महिमा लावी,
तेनी सन्मुख थाओ. चैतन्यमां बेहद ताकात छे,
अनंत शक्तिसंपन्न तेनो अचिंत्य महिमा छे; तेनी
शक्तिओने ओळखे तो तेनो महिमा आवे ने जेनो
महिमा आवे तेमां सन्मुखता थया विना रहे नहीं.–
आ रीते स्वसन्मुखता थतां अपूर्व सुख–शांति ने
धर्म थाय छे. आवी स्वसन्मुखता कराववा माटे
आचार्य भगवाने चैतन्यशक्तिनुं अद्भुत वर्णन
कर्युं छे. तेना उपर पू. गुरुदेवनां अध्यात्मरसभीनां
प्रवचनोनुं केटलुंक दोहन गतांकमां आवी गयुं छे,
त्यार पछी विशेष अहीं आपवामां आव्युं छे. आ
४७ शक्तिनां विस्तृत प्रवचनो ‘आत्मप्रसिद्धि”
नामना पुस्तकरूपे प्रसिद्ध थई गया छे,
जिज्ञासुओने ते वांचवा भलामण छे.
अनंतशक्तिथी परिपूर्ण चैतन्यतत्त्व छे तेनी सन्मुख थईने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे
निर्मळ पर्याय प्रगटे ते पर्यायनी अभेदता सहित चैतन्यतत्त्वने ‘समयसार’ कहे छे आवी दशाथी
आत्मानुं जीवन ते ज साचुं जीवत्व छे. एवुं जीवत्व जेणे जाण्युं तेणे साचुं जीवनसंशोधन कर्युं, ते धर्मी
थयो, तेनुं जीवन सुखी थयुं.
भाई, तारा सुखी जीवननुं कारण तारी चैतन्यशक्ति ज छे, बीजुं कोई कारण नथी. जुओ, आ
सम्यग्दर्शननी पद्धति कहेवाय छे. ४७ शक्तिना वर्णनद्वारा जे चैतन्यपिंड बताव्यो तेनी सन्मुख थतां
सम्यग्दर्शनादि प्रगटीने घातिकर्मोनी ४७ प्रकृतिनो क्षय करीने जीव केवळज्ञान पामे छे, ते सर्वज्ञ थाय
छे, सर्वदर्शी थाय छे, परम सुखी थाय छे, अनंतवीर्यसंपन्न थाय छे, परम स्वतंत्र प्रभुताथी ते शोभी
ऊठे छे, ने ते ज सादि–अनंत निश्चयजीवन परम आनंद सहित जीवे छे. सम्यग्दर्शन वगरना जीवनने
ज्ञानीओ खरुं जीवन कहेता नथी, ए तो दुःखमय जीवन छे, तेमां चैतन्यनी दशा हणाय छे;–एवा
जीवनने जीवन केम कहेवाय?
अहा! चैतन्यदरियामां केवा केवा रत्नो पड्या