: २० : आत्मधर्म: २०४
* उत्तम ब्रह्मचर्यधर्म *
* भादरवा सुद १४ अनंतचतुर्दशीना रोज अपायेलुं प्रवचन (वीर सं. २४८६) *
दसलक्षण धर्ममां आजे छेल्लो दिवस उत्तम ब्रह्मचर्य धर्मनो छे. आ धर्मो सम्यग्दर्शन वगर
होता नथी. धर्मनुं मूळीयुं ज सम्यग्दर्शन छे. अहीं उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म कोने होय छे ते आचार्यदेव कहे
छे–सुकृति एटले सम्यग्द्रष्टि–धर्मात्मा, तेने ब्रह्मानंदस्वरूप आत्मानुं भान थयुं छे अने तेनी सन्मुख
परिणतिनी लीनता थई छे त्यां स्त्री वगेरेने जोतां तेने दुर्भावोनी उत्पत्ति थती नथी,–आवी निर्मळ
परिणतिनुं नाम ब्रह्मचर्यधर्म छे. जे पवित्र आत्मा एटले सम्यग्द्रष्टि आत्मा, चैतन्यना अतीन्द्रिय
आनंदना स्वाद पासे जेणे जगतना विषयोने तूच्छ जाण्या छे एवो धर्मात्मा, स्त्री वगेरेना अंगो
जोतां पण विकृति पामतो नथी तेने दुर्द्धर एवो ब्रह्मचर्यधर्म होय छे. जेने चैतन्यनुं भान न होय ने
परविषयोमां सुख मानतो होय ते कदाच शुभरागवडे ब्रह्मचर्य पाळतो होय–तोपण तेना ब्रह्मचर्यने
धर्म कहेता नथी. तेनी तो द्रष्टि ज मेली छे, ते रागथी धर्म माने छे तेथी तेनामां पवित्रता नथी, अने
जे आत्माने पवित्रता नथी तेने ब्रह्मचर्यादि कोई धर्म होतो नथी. तेथी अहीं ‘पवित्र आत्मा’ एम
कह्युं छे. जेनामां पवित्रता छे, जेना श्रद्धा–ज्ञान चोकखा थया छे एवा धर्मात्माने ज ब्रह्मचर्यादि
वीतरागीधर्मोनी आराधना होय छे. सम्यग्दर्शन वगर आराधना कोनी करशे? जेनी आराधना करवी
छे तेने प्रथम श्रद्धा–ज्ञानमां ल्ये, पछी तेमां स्थिरता करीने तेनी आराधना करे. आवी आराधनामां ज
उत्तम क्षमा ब्रह्मचर्य वगेरे धर्मो होय छे.
साहित्यनी प्रभावना माटे योजना
श्री दिगंबर जिनमंदिरो तथा स्वाध्याय मंदिरोने, श्री दिगंबर जैन
स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ, तरफथी प्रसिद्ध थयेल सत्साहित्य एक उदार
सद्गृहस्थ तरफथी योग्य लागे ते मुजब भेट अगर अर्ध मुल्यथी आपवामां
आवशे.
जेमने आवश्यकता होय तेओ ते ते शहेरना दिगंबर जैन समाजना बे
अग्रगण्य सभ्योनी सही साथे नीचेना सरनामे पत्रव्यवहार करे. साहित्य
विना मूल्ये जोईए छे के अर्धा मूल्ये–ते पण जणावे.
उपरोक्त योजना सं. २०१७ना कारतक सुद पुनम सुधी अमलमां रहेशे
तो ते दरम्यान जे जे साहित्यनी आवश्यकता होय ते मंगावी लेवुं. अहींथी
प्रसिद्ध थयेल सत्साहित्यनी नामावलिनी जरूर होय तेमणे अहींथी पोस्ट द्वारा
मंगावी लेवी.
श्री दि. जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट,
सोनगढ (सौराष्ट्र)