Atmadharma magazine - Ank 204
(Year 17 - Vir Nirvana Samvat 2486, A.D. 1960)
(Devanagari transliteration).

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संसार तो आवो छे....माटे तेनाथी उदास था ने आत्मामां आव! ज्ञातापणे रहेवुं ए ज
समाधाननो उपाय छे...ज्यां आयुष्य पूरुं थयुं त्यां शो उपाय?–अने ज्यां निरूपायता छे त्यां
समाधान (–सहनशीलता) ए ज उपाय छे.
आ उपरांत श्री कृष्णना मृत्यु प्रसंगनुं द्रष्टांत आपीने संसारनी अशरणता समजावी हती.
वैराग्यरसथी नीतरता गुरुदेवनां वचनो संतप्त हृदयोने घणी शांति आपता हता.
पू. बेनश्री बेन पण आखो दिवस अवारनवार आश्रममां जईने, मातानी जेम परम वात्सल्य
पूर्वक धीरेन्द्रना कुटुंबीजनोनी संभाळ लईने वैराग्योपदेशनुंं सींचन करी जता.....जेम सुकाता मोलने
जलवृष्टि नवपल्लवित करे तेम शोकना आघातथी घेरायेला जीवोने तेओश्रीनी अमीभरीवृष्टि
शांतरसनुं सींचन करीने नवपल्लवित करती हती खरेखर, आ जगतमां ज्ञानी–संतोनी बलिहारी छे के
जेमना सान्निध्यमात्रथी संसारना भयंकर दुःखो भूलाईने जीवना परिणाम वैराग्य तरफ वळी जाय छे.
गुरुदेवे जे परम मार्ग बताव्यो छे ते मार्ग महा कल्याणकारी छे, सर्व प्रसंगे ते ज एक
शरणभूत छे, अने सर्व उद्यमथी जीवे एक ज मार्ग आराधवा जेवो छे. तेमांय जीवननी आवी
क्षणभंगुरता देखीने तो, क्षणनाय विलंब विना वेगपूर्वक ए हितमार्गे वळवा जेवुं छे.
भाई धीरेन्द्रना स्मरणार्थे पुस्तीका छपाववा माटे तेमज जिनमंदिर वगेरे शुभखातामां तेमना
पिताजी तरफथी लगभग एक हजार रूा. जाहेर करवामां आव्या हता. भाई धीरेन्द्रनो आत्मा देव–
गुरु–धर्मनी उपासनामां आगळ वधीने आत्महित साधे, अने ‘अकलंक’ तरीकेनुं जे पात्र तेणे भजव्युं
हतुं तेवो साक्षात् भाव प्रगट करीने ते साक्षात् ‘अ–कलंक’ एवा सिद्धपदने पामे–एवी भावना
भावीए छीए. धीरेन्द्रनो आ प्रसंग जोईने आपणो आत्मा पण वेगपूर्वक वैराग्य तरफ वळे ने
संतोनी चरण छायामां हवे जलदी आत्महितने साधीए.....ए ज भावना.
(३) उपरोक्त प्रसंगना बीजे ज दिवसे, एटले के भादरवा वद त्रीजनी रात्रे अजमेरना
सुप्रसिद्ध शेठ अने भारतना दि. जैन समाजना एक अग्रगण्य नेता सर भागचंदजी सोनीना सौथी
मोटा सुपुत्र कुंवर प्रभाचंद्रजी (केप्टन,
B. A.) मात्र ३१ वर्षनी युवान वये कलकत्तामां अकस्मात
हृदय बंध पडी जवाथी स्वर्गवास पामी गया. आ समाचारथी भारतना अनेक शहेरोना जैन समाजने
घणो आघात लाग्यो ने ठेर ठेर शोक सभाओ भराणी. तेओ शांत, धर्मप्रेमी, उत्साही, अने
वेपारक्षेत्रमां पण बाहोश सज्जन हता, अध्यात्मिक शास्त्रोना अभ्यासनो तेमने प्रेम हतो. सोनगढनुं
आध्यात्म साहित्य पण तेओ प्रेमपूर्वक वांचता अने तत्त्वचर्चामां रस लेता. ईंदोरना सर हुकमीचंदजी
शेठना तेओ दोहित्र (पुत्रीना पुत्र) थाय. आवा नवयुवान पुत्रना स्वर्गवासथी सर भागचंदजी शेठने
अने तेमना कुंटुंब परिवारने घणो ज आघात थाय–ए सहज छे....परंतु जन्म–मरणथी भरेला आ
संसारनी स्थिति ज एवी छे...एमां एक वैराग्य ज शरण छे एम समजीने तेओ पोताना आत्माने
जैनधर्मना तत्त्वोना विचारमां जोडे.....अने वीतरागी देव–गुरु–धर्मना शरणे आत्महितना पंथे
पोताना आत्माने वाळे.....एम भावना भावीए छीए. कुंवर प्रभाचन्द्रजीनो आत्मा पण पोताना
अध्यात्मप्रेममां आगळ वधीने, जिनेन्द्रधर्मना प्रतापे आ असार–संसारना जन्म–मरणोथी छूटीने
सिद्धपदने पामे–एम जिनेन्द्रदेवने प्रार्थना करीए छीए.
(४) राजकोटना डो. बोघाणीना मातुश्री दयाबेन प४ वर्षनी वये ता. ६–९–६० ना रोज
स्वर्गवास पाम्या छे. ता ४–९–६० ना रोज राजकोटमां जिनेन्द्रभगवाननी रथयात्रामां त्रण कलाक
सुधी भक्तिपूर्वक तेमणे भाग लीधो हतो. त्यारबाद एकाएक बिमारी आवतां पू. गुरुदेवना
स्मरणपूर्वक तेओ स्वर्गवास पामी गया. तेओ अवारनवार सोनगढ आवीने लाभ लेता तेमनो
आत्मा धर्मप्रेममां आगळ वधीने जन्ममरण रहित थाय......ए ज भावना