Atmadharma magazine - Ank 205
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 10 of 25

background image
कारतक : २४८७ : :
मोक्षार्थी जीवने
छूटकारानो उपाय दर्शावे छे.
जे जीव मोक्षार्थी छे, जे बंधनथी छूटवा मांगे छे तेने आचार्यदेव
बंध अने मोक्षनां कारण समजावीने कहे छे के हे जीव! स्वद्रव्यना आश्रये
मुक्ति छे ने परद्रव्यना आश्रये बंधन छे–एम जाणीने तुं परद्रव्यनो
आश्रय छोड, ने स्वद्रव्यनो आश्रय कर. ते माटे स्व–परनुं भेदज्ञान
कर...उपयोगनुं अने रागनुं पण भेदज्ञान कर. उपयोगस्वरूप तारो
आत्मा रागथी ने परद्रव्योथी भिन्न छे–एम बराबर जाणीने, उपयोग
साथे एकता कर. एम करवाथी तारा बंधन छूटी जशे ने तारो मोक्ष थशे.
(बंध अधिकार उपर गुरुदेवना प्रवचनोमांथी दोहन.
संवत २०१६ आसो वद ३–४)
*
* समयसारमां शुद्धात्मा देखाडवानी प्रधानता छे; बंधननी प्रधानता नथी *
खरेखर आत्मानो ज्ञायकस्वभाव छे, ते ज्ञायकस्वभाव पोते बंधरूप नथी, ते अबंधस्वभावी छे.
शरूआतमां आवा अबंधस्वभावी–चित्स्वभावी शुद्धआत्माने ‘नमः समयसाराय’ कहीने नमस्कार कर्या. ते
शुद्धआत्मा स्वानुभूतिथी प्रकाशमान छे;–कोई रागथी–विकल्पथी ते प्रकाशमान थतो नथी. आवो शुद्धआत्मा
एकत्व–विभक्त छे तेनुं आ समयसारमां कथन छे. एटले आ बंध अधिकारमां पण बंधननी प्रधानता नथी
पण बंधनरहित अबंधस्वरूपी शुद्धआत्मा बताववानी ज प्रधानता छे.
* बंधननो स्वामी मिथ्याद्रष्टि छे...सम्यग्द्रष्टि शुद्धात्मानो ज स्वामी छे. *
बंधनो अधिकार कोने छे? बंधननी प्रधानता कोने छे? ने बंधननो स्वामी कोण छे?–के मिथ्याद्रष्टि
ज बंधननो स्वामी छे एटले के मिथ्याद्रष्टिने ज बंधन थाय छे. सम्यग्द्रष्टि तो शुद्धआत्मानो ज स्वामी छे,
शुद्धआत्माना स्वामीत्वमां तेने बंध साथे एकता थती नथी एटले तेने खरेखर बंधन थतुं नथी.