Atmadharma magazine - Ank 205
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : २०प
आत्माना अबंध स्वभावने नहि जोनारो अज्ञानी ज बंधनो कर्ता थाय छे. आत्माना अबंध स्वभावने देखनार
धर्मात्मा बंधने पोताथी जुदो जाणतो थको बंधनो कर्ता थतो नथी, ते अबंधभावरूप निर्मळ भावने ज करे छे.
* मोक्षनुं मूळ भेदज्ञान: बंधनुं मूळ मिथ्यात्व *
अबंध चैतन्यस्वभावमां जेने एकत्व नथी अने बंधभावमां जेने एकता छे तेने ज बंधन अने
संसारभ्रमण थाय छे; एटले राग साथे उपयोगनी एकतारूप जे मिथ्यात्व छे ते ज संसारनुं मूळ छे. प्रगट
हो कि मिथ्यात्व ही आस्रव और बंध है; अने उपयोग तथा रागनी भिन्नतारूप जे भेदज्ञान ते मोक्षनुं मूळ
छे; भेदज्ञान थतां जीव रागमां एकतारूप परिणमतो नथी, एटले तेने बंधन के संसारभ्रमण थतुं नथी. आ
रीते मोक्षनुं मूळ भेदज्ञान छे ने बंधनुं मूळ मिथ्यात्व छे.
* हे जीव! तुं बंध–मोक्षना कारणने जाण! स्वद्रव्याश्रित मोक्ष; परद्रव्याश्रित बंध. *
भाई, तारे मोक्ष करवो छे ने! बंधनथी तारा आत्मानो छूटकारो करवो छे ने? तो मोक्षनुं कारण शुं
ने बंधनुं कारण शुं, ते बंनेने ओळखीने मोक्षना कारणने आदर, ने बंधना कारणने छोड!
शुद्ध चैतन्यमय अबंधस्वभावी एवुं जे तारुं स्वद्रव्य, तेनो आश्रय ते मोक्षनुं कारण छे, अने
परद्रव्यनो आश्रय ते बंधनुं कारण छे.
* हे मोक्षार्थी जीवो! तमे स्वद्रव्यनो आश्रय करो *
परद्रव्य कांई बंधनुं कारण नथी, पण परद्रव्य तरफ झूकता तारा परिणाम ज बंधनुं कारण छे. परद्रव्य
तो निमित्त छे, ते निमित्त पोते कांई बंधनुं कारण नथी, परंतु ते निमित्तनो आश्रय करनार जीव पोते
पोताना विभावपरिणामने लीधे ज बंधाय छे. अने चिदानंदस्वरूप स्वद्रव्यना आश्रये थतां निर्मळ परिणाम
ते मोक्षना कारणरूप छे. आ रीते, स्वद्रव्यनो आश्रय अने परद्रव्यनो आश्रय तेने मोक्षनुं अने बंधनुं कारण
जाणीने, हे मोक्षार्थी जीवो! तमे मोक्षने माटे स्वद्रव्यनो ज आश्रय करो, अने परद्रव्यनो आश्रय छोडो.
परद्रव्यना आश्रये थतो जे व्यवहार ते सघळोय छोडीने स्वद्रव्यना आश्रये निश्चय श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र प्रगट
करो...ते ज मोक्षनुं कारण छे.
* परंपराकारण एटले खरुं कारण नहि *
बंधनना कारणनुं निमित्त थाय–एटली ज परद्रव्यना कार्यनी मर्यादा छे, परंतु बंधननुं कारण पण
थाय–एवी तेनी मर्यादा नथी. हवे, बंधना कारणनुं निमित्त होवाथी परद्रव्यने परंपरा बंधनुं कारण कहेवाय,
तो पण ते पोते कांई बंधनुं कारण थतुं नथी, तेम परद्रव्याश्रित एवा व्यवहाररत्नत्रयने कदाच परंपरा मोक्षनुं
कारण कहे तो त्यां पण एम समजवुं के ते व्यवहार पोते कांई मोक्षनुं कारण नथी, मोक्षनुं कारण तो स्वद्रव्यना
आश्रये थता निश्चय रत्नत्रय ज छे. व्यवहारनी एवी मर्यादा नथी के ते मोक्षनुं कारण थाय. मोक्षमार्गनी साथे
सहकारीपणे निमित्त थाय एटलामां ज व्यवहारनुं कार्यक्षेत्र पूरुं थई जाय छे.–ए मर्यादाथी आगळ जाय तो ते
जीव निश्चय–व्यवहारनी मर्यादाने ओळंगनार मिथ्याद्रष्टि छे. ए ज रीते परद्रव्यने बंधनुं कारण माने ते पण
स्व–परनी मर्यादाने ओळंगनार मिथ्याद्रष्टि ज छे.
* जिनोपदेश पराश्रय छोडावीने स्वाश्रय करावे छे *
स्वद्रव्यना आश्रये बंधन थतुं नथी, बंधन परद्रव्यना ज आश्रये थाय छे; तेथी परद्रव्यनो आश्रय
छोडावीने स्वद्रव्यनो आश्रय कराववाना हेतुथी शास्त्रोमां एवो पण उपदेश आपे के तुं परद्रव्यने छोड! त्यां,
परद्रव्यने छोडवानुं कहेतां परद्रव्यनो आश्रय छोडवानुं कह्युं छे–एम तात्पर्य समजवुं. जिनोपदेशनुं तात्पर्य
पराश्रय छोडावीने स्वाश्रय कराववानुं छे, केम के एम करवाथी ज जीवने सुख थाय छे.