निमित्त के व्यवहार बधायनुं आलंबन ऊडाडी दीधुं छे; ने निमित्तना आलंबनथी के व्यवहारना आलंबनथी
साध्यनी सिद्धि जरापण थती नथी, एम बताव्युं छे. परनुं अवलंबन तो दूर रहो, रागनुं अवलंबन पण दूर
रहो, ज्यां सुधी दर्शन–ज्ञान–चारित्रना भेदनुं अवलंबन रहे ने अभेद चैतन्यने अनुभवमां न ल्ये त्यांसुधी
जीवने साची शांति–सुख–आनंद के धर्मनी सिद्धि थती नथी. दर्शन–ज्ञान–चारित्र एवा भेद होवा छतां
चैतन्यतत्त्व पोताना एकाकारस्वरूपथी भेदाईने खंडखंडरूप थई जतुं नथी. अहीं ‘आत्मज्योति’ मां श्रद्धा–
ज्ञान–चारित्र त्रणे समावी दीधा छे. जेम अग्निनी ज्योतमां पाचक, प्रकाशक अने दाहक एवा त्रणे गुणो
समायेला छे तेम ‘आत्मज्योत’ मां पण आखा स्वभावने श्रद्धामां पचाववानी पाचकशक्ति, स्व–परने
जाणवारूप प्रकाशकशक्ति अने विभावोने भस्म करी नांखवानी दाहक शक्ति छे. आवी आत्मज्योतने
श्रद्धामां–ज्ञानमां लईने तेमां ठरवुं ते धर्म छे. आचार्यदेवे बीजा जीवोनी वात न करतां पोतानी ज वात करी
के अमे सततपणे आ आत्मज्योतिने अनुभवीए छीए. एटले बीजा जे मोक्षार्थी जीवो अमारी जेम
आत्मानी सिद्धि प्राप्त करवा चाहता होय तेओ पण आवी आत्मज्योतिनो अनुभव करो–एम तेमां गर्भित
उपदेश आवी ज गयो, केमके, आ एक ज रीते साध्य आत्मानी सिद्धि छे ने बीजी कोई रीते साध्य आत्मानी
सिद्धि नथी.
पोताना स्वभावना ज अनुभवथी थाय छे, कोई बहारना पदार्थोना अनुभवथी शांती थती नथी माटे हे
जीव! तारी शांति तारामां ज ढूंढ! कस्तुरीमृग जेवा पशुनी जेम बहारमां तारी शांति न ढूंढ. तारी प्रभुता
तारामां छे पण तेने भूलीने पामरपणे तुं बहार भटकी रह्यो छे. स्वभावे प्रभु होवा छतां पर्यायमां पामर
थई रह्यो छे. श्रीमद् राजचंद्रे कह्युं छे के प्रभुमां पण अपलक्षणनो पार नथी.– ते कया प्रभुनी वात? जेओ
केवळज्ञान पामीने परमात्मा थई गया एमनी ए वात नथी, पण स्वभावनी प्रभुताने भूलीने जेओ पामर
थई रह्या छे ने राग–द्वेष–मोहरूप अपलक्षणमां एटले के विभावमां वर्ती रह्या छे तेनी आ वात छे. प्रभु
होवा छतां अपलक्षणनो पार नथी–एम कहीने स्वभावनी प्रभुता बतावीने पर्यायनी पामरता पण बतावी.
बंनेनुं ज्ञान करी, प्रभुताना जोरे पामरता टाळवी ते प्रयोजन छे.
पामरता समजे छे. चैतन्यनी परम प्रभुता पासे राग तो तेने अत्यंत तुच्छ भासे छे, ते रागवडे पोतानी
प्रभुता धर्मी केम माने?–न ज माने. जे जीव रागने प्रभुता (मोटाई, महिमा) आपे छे ते चैतन्यनी
प्रभुताने भूले छे, एटले पर्यायमां पामर थईने संसारमां परिभ्रमण करे छे. अने जे जीव रागथी पार
चैतन्यनी प्रभुताने ओळखे छे ते पर्यायमां पण प्रभुता प्रगट करी संसारथी छूटी सिद्ध पदने पामे छे.
आत्मज्योतिने ज अनुभवीए छीए...क््यां सुधी?–सादि अनंत काळ सुधी आ आत्मज्योतिना आनंदने
अनुभव्या करशुं..तेमां ज मग्न रहेशुं. जुओ, आ धर्मनी रीत! आ मोक्षनो राह! आवा अनुभव सिवाय
बीजी कोई धर्मनी रीत नथी, के बीजो कोई मोक्षनो राह नथी.