: १६ : आत्मधर्म : २०प
शक्तिना भानपूर्वकनी भक्ति
[श्री ऋषभजिनस्तोत्र उपरना प्रवचनमांथी: वीर संवत २४८६ श्रावण वद १३]
संतोने आ संसारमां भगवान सर्वज्ञ परमात्मा ज प्रियतम
छे...बीजुं कांई प्रिय नथी. संत् धर्मात्माने प्रियमां प्रिय कांई होय
तो, अंतरमां तो पोतानो चिदानंदस्वभाव प्रियतम छे, ने
बहारमां सर्वज्ञ परमात्मा तेने प्रियतम छे. तेथी एवा परमात्मा
प्रत्ये भक्तिनो भाव तेने उल्लसी जाय छे. आहा! आवो चैतन्य–
स्वभाव! आवो ज्ञायकबिंबस्वभाव!–एम चिदानंदस्वभावना
बहुमानपूर्वक भगवानने जे देखे छे ते धन्य छे. भगवान प्रत्ये
आवी भक्तिवाळा आराधकधर्मात्माना पुण्य पण लोकोत्तर होय
छे, तेना वचनमां जाणे अमृत झरतुं होय! लोको आवीने तेने कहे
के आप कांईक बोलो! कांईक स्तुति बोलो, कांईक चर्चावार्ता
संभळावो, आ रीते, हे भगवान! जेणे आपनी आराधना करी ते
जीव बीजाओ वडे आराधाय छे
ऋषभदेव भगवाननी स्तुति करतां पहेली गाथामां कह्युं के केवळज्ञानादि गुणोना निधान हे
नाभिनंदन आदिनाथ! आपनो जय हो. हवे बीजी गाथामां कहे छे के हे नाथ! आपना दर्शन अने ध्यान
करनार धन्य छे.
प्रश्न:– भगवाननी भक्तिनो भाव ते तो शुभराग छे, तेनो उपदेश केम आपो छो?
उत्तर:– भाई, अंतरमां चिदानंद स्वभावनुं ज्यां भान थयुं अने तेनी पूर्णानंद दशा प्राप्त करवानी
भावना वर्ते छे त्यां, एवी पूर्णानंददशाने पामेला परमात्मा प्रत्ये भक्ति–बहुमाननो उल्लास आव्या विना
रहेतो नथी. जोके ते शुभराग छे पण साधकनी भूमिकामां एवो भाव होय छे. ते रागनी केटली हद छे तेनो
साधकने बराबर विवेक वर्ते छे. खरेखर तो सर्वज्ञना स्तवनना बहाने पोताना चिदानंद स्वभावनी भावना
पुष्ट करे छे. चैतन्यस्वभावनी भावनामां जेटली वीतरागी शुद्धता थई तेटली परमार्थस्तुति छे; वच्चे राग
रही गयो त्यां बहारमां परमात्मा तरफ लक्ष जाय छे ने