Atmadharma magazine - Ank 205
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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कारतक : २४८७ : :
पावापुरीमां मुक्तिनो महोत्सव
सिद्धालयवासी हे वीर प्रभो! आप तो आजे आ पावापुरीधामथी परम मंगल एवा
मोक्षपदने पाम्या... अनादिकाळना संसारनो अंत लावीने आपश्री अभूतपूर्व सिद्धपद
पाम्या...अने...अनादिअनंतकाळमां मोक्षगामी जीवने मात्र एक ज समय जेनी प्राप्ति थाय छे
एवा स्वभावऊर्ध्वगमनवडे आप सिद्धालयमां लोकाग्रे पधार्या.
आपनां पावन चरणोथी...ने आपना मोक्षगमनथी पावन थयेली पावापुरी...आजे
पण भव्य जीवोने जाणे मोक्षमां बोलावी रही छे. ए पावनभूमिमांथी आजे पण मोक्षना
रणकार गूंजी रह्या छे के हे जीवो! आत्मानुं अंतिम ध्येय अने परम ईष्ट एवुं सिद्धपद
भगवान अहींथी पाम्या. पद्मसरोवरना कमळ पण जाणे ऊंचे आपना तरफ
नीहाळी...नीहाळीने साक्षी पूरी रह्या छे के भगवान, पाणीमां कमळनी जेम विभावोथी अने
कर्मोथी अलिप्त हता...ए अलिप्त भगवानना संगथी अमे पण अलिप्त थई गया.
हे भगवान! आप सिद्धालयमां अनंत सिद्धभगवंतोनी साथे वसता होवा छतां,
साधक बाळको अभेदभक्तिना बळे पोताना हृदयमां आपने उतारीने परमध्येयरूपे ध्यावे
छे...ने ए ध्यान बळे आपना पुनित पगले चाल्या आवे छे.
पावापुरी! आपनां मोक्षनुं पवित्र स्थान!! अहा! ए मोक्षधामने स्पर्शतां ज मुमुक्षुनुं
हैयुं आनंदथी नाची ऊठे छे...मुमुक्षुना आत्मामां मोक्षमार्गनी स्फुरणा थाय छे. परम
स्वाश्रयरूप आपना मोक्षमार्गनुं त्यां स्मरण थाय छे. मोक्षनो स्वाश्रित पंथ आपना पवित्र
पद–चिह्नोथी आजे पण शोभी रह्यो छे...ने स्वाश्रय तरफ झूकी झूकीने अमे आपना पंथे
आपना पुनित पगले–पगले आवीए छीए.
* * *
सं. २०१३ ना फागण सुद एकम–बीजे पावापुरी सिद्धिधामनी उल्लासभरी यात्रा
करतां गुरुदेवने घणी प्रसन्नता थई हती. पद्मसरोवरनी वच्चे वीरप्रभुना निर्वाण–धाममां
वीरप्रभुनां चरणोने भावथी भेटीने उल्लासथी पूजन करीने..गदगदभावे अद्भूत भक्ति
करावी हती–
आजे वीर प्रभुजी निर्वाण पदने पामीआ रे...
श्री गौतम गणधरजी पाम्या केवळ ज्ञान...सुरनर आवे निर्वाणकल्याणकने ऊजववारे.
प्रभुजी! आपे तो आपनो स्वारथ साधीओ रे...
अम बाळकनी आपे लीधी नहि संभाळ...अमने केवळना विरहामां मुकी चालीया रे.
गुरुदेवनी भक्तिबाद बेनश्री–बेने पण पावापुरीधाममां निर्वाण महोत्सव संबंधी
अद्भुत उल्लासकारी भक्ति करावी हती. अहा! ज्ञानीओनां हृदयमां कोतरायेली
सिद्धभगवंतोनी भक्ति ते वखते व्यक्त देखाती हती. प्रवचनसारमां आचार्यदेवे कह्युं ज छे के
जेमने आत्मतत्त्वनी उपलब्धि निकट छे एवा गणधरदेवादि बुधजनोना मनरूपी
शिलास्तंभमां दिव्य आत्मस्वरूपवाळा सिद्धभगवाननी (अथवा भगवान आत्मानी)
दिव्यता–महिमानी स्तुति कोतरायेली छे.
नमस्कार हो सिद्धभगवंतोने अने सिद्धपदसाधक संतोने...