मागशर : र४८७ : ९ :
मोक्षना साधनी मीमांसा
मोक्षार्थीए पहेलां तो आ वात पोताना अंतरमां मजबुत
करवी जोईए के, मारा मोक्षनुं साधन मारामां ज छे; मारा ज्ञानने
जेटलुं अंतर्मुख एकाग्र करुं तेटलुं मारुं मोक्षनुं साधन छे; ए
सिवाय जेटली बर्हिमुख वृत्ति थाय ते मोक्षनुं साधन नथी.–
आवा सम्यक् निर्णयना जोरे अंतर्मुख परिणमन थाय छे.–आ
रीते भगवती प्रज्ञा ज मोक्षनुं साधन छे.
भेदज्ञाननी खरी धगशवाळा जिज्ञासु शिष्यने अंतरनी
खरेखरी तालावेलीथी प्रश्न ऊठ्यो छे, तेने आचार्यदेव भेदज्ञाननी
रीत समजावे छे; आत्मा अने बंधनी वच्चे सावधानपणे
पटकवामां आवती भगवती प्रज्ञा–छीणी ज आत्माना मोक्षनुं
साधन छे. अंतरमां कांईक लक्ष बांधीने शिष्य कहे छे के प्रभो!
बंध अने आत्माने जुदा करवानुं आप कहो छो ते लक्षमां तो
आवे छे पण खरेखर ते बंनेने छेदीने (जुदा पाडीने) बंधथी
जुदा आत्मानो साक्षात् अनुभव केम थाय?–अंतरमां भेदज्ञाननो
प्रयत्न करतां करतां नजीक आवेलो शिष्य भेदज्ञाननी आतुरताथी
प्रश्न पूछे छे, अंतरनी झंखनाथी प्रश्न पूछे छे; आवी तैयारी
होवाथी श्रीगुरु तेने जे रीते समजावे छे ते रीते तुरत ज ते समजी
जाय छे एटले तेने अंतरमां सुंदर आनंदमय बोधतरंग ऊछळे छे.
(श्री समयसार गाथा र९४ उपरना प्रवचनोमांथी)
मोक्ष अधिकारमां आचार्यदेवे मोक्षना उपायनुं वर्णन कर्युं; ते सांभळीने जिज्ञासु शिष्य पूछे छे के
प्रभो! आत्मा अने बंधने जुदा करवा ते ज मोक्षनुं कारण छे, बीजुं कोई मोक्षनुं कारण नथी,–राग के
व्यवहारनुं अवलंबन ते मोक्षनुं कारण नथी,–एम आपे समजाव्युं, ते वात तो हृदयमां बेठी; पण हवे ते
आत्मा अने बंधने जुदा पाडवा शेनाथी?–कया साधनथी तेने जुदा करवा? अंतरमां शिष्यने आत्मा