: ८ : आत्मधर्म : र०६
ज उपाय छे. श्रद्धा–ज्ञानमां व्यवहारना आश्रयनी बुद्धि छोडीने परमार्थ–निश्चय चिदानंद
स्वभावनो आश्रय करवाथी ज सम्यग्दर्शन थाय छे.
प्रश्न :– शास्त्रोनुं हृदय शुं? ज्ञानीनुं हृदय शुं? अने मोक्षार्थीनुं कर्तव्य शुं?
उत्तर :– ज्ञानीनुं हृदय अने सर्व शास्त्रोनुं हृदय ए छे के निश्चयरूप शुद्धचैतन्यस्वभावनो आश्रय
करवो ने व्यवहारनो आश्रय छोडवो. मोक्षार्थीनुं कर्तव्य पण ए ज छे.
प्रश्न :– स्वपरनी एकत्वबुद्धि अने व्यवहार ए बंनेमां समानपणुं कई रीते छे?
उत्तर :– पराश्रयपणानी अपेक्षाए ते बंनेमां समानपणुं छे; तेथी भगवाने जेम स्वपरनी
एकताबुद्धिरूप पराश्रय छोडाव्यो छे, तेम सघळो व्यवहार पण पराश्रित होवाथी छोडाव्यो छे.
एक पराश्रय छोडवानुं कहेतां बधोय पराश्रय छोडवा जेवो ज छे,–एम आचार्यदेवे स्पष्ट
समजाव्युं छे. मिथ्याद्रष्टिनो पराश्रय हो के सम्यग्द्रष्टिनो पराश्रय हो–ते बंने पराश्रय बंधनुं
ज कारण छे तेथी ते पराश्रयरूप व्यवहार बधोय मोक्षमार्गमांथी निषेधवामां आव्यो छे.
मोक्षमार्ग तो एक स्वाश्रयरूप ज छे.
प्रश्न :– बंध–मोक्षनो टूंको सिद्धांत शो छे?
उत्तर :– ‘स्वाश्रये मोक्ष: पराश्रये बंधन”
– आ बंध मोक्षनो टूंको सिद्धांत छे. –
प्रश्न :– कोण मुक्ति पामे छे?
उत्तर :– आत्माना आश्रयरूप निश्चयनयनो आश्रय जेओ करे छे तेओ ज मुक्ति पामे छे.
प्रश्न :– कोण मुक्ति नथी पामतुं?
उत्तर :– पराश्रित एवा व्यवहारनो आश्रय जेओ करे छे तेओ मुक्ति पामता नथी.
प्रश्न :– कोने बंधन थाय छे?
उत्तर :– जेओ शुद्धनयनो आश्रय छोडे छे तेओने ज बंधन थाय छे.
प्रश्न :– कोने बंधन थतुं नथी?
उत्तर :– जेओ शुद्धनयनो आश्रय करे छे तेओ कर्मथी बंधाता नथी.
माटे हे मोक्षार्थी जीवो!
ज्ञानानंद स्वरूप निज–आत्माने समस्त विभावथी जुदो जाणीने, निज
शुद्धात्मानो आश्रय करो...ने समस्त परनो आश्रय छोडो–एम संतोनो उपदेश छे.
शुद्ध आत्मस्वभावनो आश्रय करवाथी ज सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगटीने
परमानंदरूप मोक्षपदनी प्राप्ति थशे.
व्यवहारनय ए रीत जाण निषिद्ध निश्चयनय थकी,
निश्चयनयाश्रित मुनिवरो प्राप्ति करे निर्वाणनी.
समयसार गाथा र७र
हे आर्य!
निराशा वखते महात्मा पुरुषोनुं
अद्भुत चरण संभारवुं योग्य छे.
उल्लासित वीर्यवान परमतत्त्व
उपासवानो मुख्य अधिकारी छे.
– श्रीमद् राजचंद्र (वर्ष ३र मुं)