Atmadharma magazine - Ank 206
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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मागशर : र४८७ : :
मोक्षार्थीए निश्चयनो ज आश्रय शा माटे करवो?
स्वाश्रये मोक्ष – पराश्रये बंधन
(समयसार–बंधअधिकारना प्रवचनोमांथी)
प्रश्न :– बंधनुं कारण शुं छे?
उत्तर :– बंधनुं कारण अज्ञानमय अध्यवसाय छे, तेथी ते छोडवा जेवो छे.
प्रश्न :– अध्यवसाय एटले शुं?
उत्तर :– हुं परजीवोने मारुं–बचावुं के सुखीदुःखी करुं एवी कर्तृत्वबुद्धिरूप जे पर साथे एकता; अथवा
ज्ञानमां जणाता धर्मादिक ज्ञेयपदार्थो साथे एकता; अथवा ‘हुं मनुष्य ज छुं’ एम ते
मनुष्यादि पर्यायोमां एकता;– आवी एकताबुद्धिनो अभिप्राय ते अज्ञानीनो अध्यवसाय छे,
अने ते ज बंधनुं कारण होवाथी मोक्षार्थीए ते छोडवा जेवो छे.
प्रश्न :– आचार्यदेवे अध्यवसायने छोडवानुं कह्युं, परंतु व्यवहार तो छोडवा योग्य नथी ने?
उत्तर :– व्यवहार पण सघळोय छोडवा जेवो छे. आचार्यदेव कळश १७३मां स्पष्ट कहे छे के–“सर्व
वस्तुओमां जे अध्यवसान थाय छे ते बधांय अध्यवसान जिनभगवंतोए पूर्वोक्त रीते
त्यागवा योग्य कह्यां छे तेथी अमे एम मानीए छीए के ‘पर जेनो आश्रय छे एवो व्यवहार
ज सघळोय छोडाव्यो छे.”
प्रश्न :– व्यवहारने पण शा माटे छोडाव्यो?
उत्तर :– केम के अध्यवसायनी जेम व्यवहारने पण पराश्रितपणुं ज छे, अने ते पराश्रित व्यवहार
बंधनुं ज कारण छे, तेथी मोक्षार्थी–मुमुक्षुए ते व्यवहार खरेखर छोडवा जेवो छे.
प्रश्न :– सघळोय व्यवहार छोडवा योग्य छे–एम जाणीने मुमुक्षुए शुं करवुं?
उत्तर :– पराश्रित एवो सघळोय व्यवहार जिन भगवंतोए छोडाव्यो छे, तो पछी सत्पुरुषो एक
सम्यक्निश्चयने ज निष्कंपपणे अंगीकार करीने शुद्धज्ञानघनस्वरूप निजमहिमामां स्थिरता केम
धरता नथी! मोक्षार्थीए निश्चयवडे एटले के शुद्ध आत्मस्वरूपना आश्रयवडे बधो व्यवहार
छोडवा जेवो छे, अर्थात् समस्त पराश्रय छोडवा जेवो छे.
प्रश्न :– मुमुक्षुए निश्चयनयनो ज आश्रय शा माटे करवो?
उत्तर :– केम के आत्माश्रित एवा निश्चयनयनो आश्रय करनारा ज मोक्ष पामे छे; माटे मोक्षार्थीए
तेनो आश्रय करवा योग्य छे.
प्रश्न :– मुमुक्षुए व्यवहारनो आश्रय शा माटे छोडवो?
उत्तर :– केम के पराश्रित एवा व्यवहारनो आश्रय बंधनुं ज कारण छे, तेना आश्रये कदी पण मुक्ति
थती नथी, माटे मोक्षार्थीए ते छोडवा योग्य ज छे.
प्रश्न :– व्यवहारने छोडीने संतो शुं करे छे?
उत्तर :– संतो–मोक्षार्थीओ–सत्पुरुषो व्यवहारनुं अवलंबन छोडीने, सम्यक प्रकारे एक निश्चयने ज
निष्कंपपणे अंगीकार करी शुद्धज्ञानस्वरूप निज महिमामां स्थिर थाय छे.
प्रश्न :– सम्यग्दर्शन प्राप्त करवा माटे शो उपाय छे?
उत्तर :– सम्यग्दर्शन प्राप्त करवा माटे पण उपर कह्या ते