मागशर : र४८७ : ११ :
मोक्षार्थीए पहेलां तो आ वात पोताना अंतरमां मजबूत करवी जोईए के, मारा मोक्षनुं साधन
मारामां ज छे, मारा ज्ञानने जेटलुं अंतर्मुख एकाग्र करुं तेटलुं मारुं मोक्षनुं साधन छे; ए सिवाय जेटली
बहिर्मुखवृत्ति थाय ते मोक्षनुं साधन नथी.–आवा सम्यक् निर्णयना जोरे अंतर्मुख परिणमन थाय छे. परंतु
रागने ज जे मोक्षनुं साधन माने तेने रागथी जुदुं परिणमन थतुं नथी, ते तो राग साथे उपयोगने एकमेक
करीने बंधाय ज छे. जेम आत्माना मोक्षरूपी कार्य आत्माथी जुदुं नथी तेम तेनुं साधन पण आत्माथी जुदुं
नथी. ते साधन ‘भगवती प्रज्ञा’ ज छे.
आत्माने अने रागने नीकटता छे पण एकता नथी, बंनेना लक्षण जुदा छे. भगवती प्रज्ञाने अने
आत्माने तो एकता छे. आत्मा अने बंध बंनेना भिन्न भिन्न लक्षणोने जाणीने, भगवती प्रज्ञा तेमने छेदी
नांखे छे; ते बंनेने जुदा करीने भगवती प्रज्ञा आत्मा साथे तो एकता करीने तेमां लीन थाय छे, ने बंधने
पोताथी जुदो ज राखे छे. आवुं भेदज्ञान करनारी भगवती प्रज्ञा ज मोक्षनुं साधन छे, ते प्रज्ञावडे ज
आत्माने बंधनथी जुदो करी शकाय छे.
अंतरमां भेदज्ञाननो प्रयत्न करनार जिज्ञासु शिष्य फरी पूछे छे के प्रभो, आपे आत्मा अने बंधने
प्रज्ञाछीणीवडे जुदा करवानुं कह्युं; पण ज्ञानने अने बंधने चेतक–चेत्यपणाने लीधे अत्यंत नीकटता छे,
(शिष्य ‘नीकटता’ कहे छे पण ‘एकता’ नथी कहेतो,) एवी नीकटता छे के जाणे बंने साथे ज होय; ज्यां
ज्ञान छे त्यां ज राग छे,–आम नीकटता छे तो तेमने प्रज्ञाछीणीवडे ‘खरेखर’ कई रीते छेदी शकाय? बंनेनो
जुदो अनुभव कई रीते थाय?
जुओ, आ भेदज्ञाननी खरी धगशवाळा शिष्यनो प्रश्न! अंतरमां खरी तालावेलीपूर्वक प्रश्न ऊठ्यो
छे, तेने आचार्यदेव भेदज्ञाननी रीते समजावे छे;
हे वत्स! आत्मा अने बंधना नियत स्वलक्षणोनी सूक्ष्म अंतरंगसांधमां प्रज्ञाछीणीने सावधान थईने
पटकवाथी तेमने छेदी शकाय छे, ए रीते बंधथी जुदो आत्मा अनुभवी शकाय छे–एम अमे जाणीए छीए.
जुओ, आचार्यदेव स्वानुभवथी भेदज्ञाननी रीत बतावे छे. आत्मा अने बंध अज्ञानथी एक जेवा
लागे छे, पण खरेखर तेओ जुदा ज छे–एम प्रज्ञावडे अमे जाणीए छीए. प्रज्ञाछीणीवडे तेमने खरेखर छेदी
शकाय छे.
अंतरमां कंईक लक्ष बांधीने शिष्य कहे छे के प्रभो! आप जे कहो छो ते लक्षमां तो आवे छे, पण
खरेखर ते बंनेने छेदीने बंधथी जुदा आत्मानो साक्षात् अनुभव केम थाय?–अंतरमां जुदापणानो अभ्यास
करतां करतां नजीक आवेलो शिष्य भेदज्ञाननी आतुरताथी प्रश्न पूछे छे, अंतरनी झंखनाथी प्रश्न पूछे छे;
आवी तैयारी होवाथी श्रीगुरु तेने जे रीते समजावे छे ते रीते तुरत ज ते समजी जाय छे एटले तेने
अंतरमां सुंदर आनंदमय बोधतरंग ऊछळे छे. आ रीते, सावधानपणे पटकवामां आवती भगवती
प्रज्ञाछीणी ज आत्माना मोक्षनुं साधन छे.
प्र...ज्ञा एटले के विशेष ज्ञान, तीक्ष्ण ज्ञान, तीखुं–उग्र–सूक्ष्म–ज्ञान, तेना वडे आत्मा अने बंध बंनेना
भिन्नभिन्न लक्षणो जाणीने तेमने जुदा पाडी शकाय छे. ते बंनेना भिन्न भिन्न लक्षणो केवा छे? ते समजावे
छे:
प्रथम आत्मानुं स्वलक्षण तो ‘चैतन्य’ छे.
अने बंधनुं स्वलक्षण तो रागादिक छे.
चैतन्य के जे आत्मानुं स्वलक्षण छे ते बाकीना समस्त द्रव्योथी असाधारण छे, ते चैतन्य उत्पाद–
व्यय–ध्रुवपणे वर्ततुं थकुं जे जे गुण–पर्यायोमां व्यापीने