Atmadharma magazine - Ank 206
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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मागशर : र४८७ : १३ :
मोक्षार्थी जीवो उपर अनुग्रह करीने
संतो तेने शुद्धनयनुं अवलंबन करावे छे
समयसार गा. र७र उपरना प्रवचनमांथी
(वीर सं. र४८६ ना आसो वद १०)
व्यवहारनय ए रीत जाण निषिद्ध निश्चयनय थकी,
निश्चयनयाश्रित मुनिवरो प्राप्ति करे निर्वाणनी. र७र.


प्रश्न :–
आपे व्यवहारने हेय कह्यो परंतु मोक्षमार्गमां सम्यग्द्रष्टिने पण व्यवहार होय छे तो खरो?
उत्तर :– सम्यग्द्रष्टिने मोक्षमार्गमां साधतां साधतां वच्चे व्यवहार हो तो भले हो,–परंतु तेमने ते
व्यवहारमां एकत्वबुद्धि होती नथी, ते व्यवहारना आश्रये मारुं कल्याण थशे एम ते मानता नथी,
शुद्धात्मामां ज एकत्वबुद्धि होवाथी तेने शुद्धात्माना आश्रये निर्मळ परिणामनी सतत धारा चाली
जाय छे,–ने व्यवहार तेनाथी जुदो ज रहे छे. एटले मोक्षमार्गमां साथे व्यवहार होवा छतां, मोक्षमार्ग
कांई तेना आधारे नथी. मोक्षमार्गमां शरीरादि परद्रव्यो पण संयोगरूपे साथे वर्ते छे,–पण जेम ते
शरीरादि पदार्थो परद्रव्य छे, तेम मोक्षमार्गनी अपेक्षाए (अथवा तो शुद्धआत्मानी अपेक्षाए) ते
रागरूप व्यवहार पण परद्रव्यनी जेम ज जुदो छे, एटले परद्रव्य होवा छतां जेम तेना आश्रये
मोक्षमार्ग नथी, तेम रागादि व्यवहारना आश्रये पण मोक्षमार्ग नथी. आ रीते, परद्रव्यनी जेम ज
पराश्रित व्यवहारने आत्माना शुद्ध स्वभावथी जुदो जाण्या वगर शुद्धात्माना अनुभवरूप
सम्यग्दर्शनादि थता नथी, मोक्षमार्ग थतो नथी. माटे सम्यग्द्रष्टि व्यवहारथी मुक्त छे–जुदो छे. हे
भाई! तुं व्यवहारथी जुदो था...ने शुद्ध आत्मामां आव तो तने सम्यग्दर्शन थाय. सम्यग्दर्शन पछी जे
रागरूप व्यवहार आवे तेमां सम्यग्द्रष्टि बंधातो नथी–एटले के तेमां एकत्वबुद्धि करतो नथी, पण
तेनाथी जुदो ज रहे छे; माटे सम्यग्द्रष्टिने व्यवहारथी मुक्त (छूटो) ज कह्यो छे. व्यवहारमां जे बंधाय
छे–तेमां एकता करीने अटके छे–ते मिथ्याद्रष्टि छे.
प्रश्न :– तो शुं व्यवहार छे ज नहीं?
उत्तर :– व्यवहार छे भले,–पण मोक्षमार्ग तेना आधारे नथी. व्यवहारना आश्रये मोक्षमार्ग मानवो ते
तो परद्रव्यथी लाभ मानवा जेवुं छे. जेम, परद्रव्य