Atmadharma magazine - Ank 206
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : २०६
छे माटे स्वद्रव्य छे–एवी मान्यतामां स्व–परनी एकताबुद्धिरूप मिथ्यात्व छे, तेम रागरूप व्यवहार छे तो
तेने लीधे निश्चय छे–एवी मान्यतामां स्वभाव अने परभावनी एकताबुद्धिरूप मिथ्यात्व छे.
साधकने तो सुख अने साथे किंचित दुःख पण छे, बंने धारा (एक वधती ने बीजी घटती) साथे वर्ते
छे; बंने साथे होय तेथी शुं एकने कारणे बीजुं छे? शुं दुःख छे माटे सुख छे? ना. बस! बंने साथे होवा
छतां जेम दुःख छे माटे सुख छे–एम नथी, तेम निश्चय अने व्यवहार बंने साथे होवा छतां, व्यवहार छे माटे
निश्चय छे– एम नथी. व्यवहारना आश्रये बंधन छे, ने निश्चयना आश्रये मुक्ति छे,–एम बंने भिन्न–भिन्न
स्वरूपे वर्ते छे.
व्यवहार छे माटे मोक्षमार्ग छे–एम तो कही शकातुं नथी; परंतु आम कही शकाय छे के व्यवहारनो
आश्रय छे माटे बंधन छे. जेना आश्रये बंधन थाय छे तेने मोक्षनुं साधन मानवुं–ते तो मोक्षमार्गनो घात
करवा जेवुं छे. जे जीव व्यवहारने मोक्षनुं साधन मानीने तेनो आश्रय करे छे ते जीवनी पर्यायमां
मोक्षमार्गनो घात थई जाय छे–तेना सम्यक्त्वादि हणाई जाय छे, एटले ते जीव मिथ्यात्वादिथी बंधाय ज छे,
छूटतो नथी. भाई, मुक्तिना राह तो व्यवहारथी न्यारा छे. अंतरमां तारा शुद्धात्माना आश्रये ज मोक्षनो
राह छे...तारा चैतन्यमां एवो अचिंत्य गुप्त चमत्कार छे के तेनी सन्मुख थतां ज बंधनना टूकडेटूकडा थई
जाय छे ने अबंधभावरूप मोक्षमार्ग प्रगटे छे माटे हे मोक्षार्थी! मोक्षने माटे तुं शुद्धनयनुं अवलंबन लईने
शुद्धात्माने ग्रहण कर;–आम संतोने करुणापूर्वक उपदेश छे.
मोक्षनी ज जेने अभिलाषा छे एवा मोक्षार्थीने बंधपरिणामनो उत्साह केम आवे? मोक्षार्थीने तो
शुद्धात्माना ग्रहणनो ज उत्साह छे. बंधपरिणामना उत्साहवंतने शुद्धात्मानी रुचि ज नथी, तेथी खरेखर ते
मोक्षनो अर्थी नथी पण संसारनो ज अर्थी छे. अहा! जुओ तो खरा आ वीतरागी सन्तोनी वाणी एक तरफ
पूर्ण चैतन्यनूरथी भरेलुं ज्ञायकपूर, ने बीजी तरफ बधाय पराश्रितव्यवहार,–बंनेनुं अत्यंत भेदज्ञान कराव्युं
छे; बंनेनी जात जुदी, बंनेना आश्रय जुदा, बंनेना फळ जुदा.
एक स्वभाव, बीजो परभाव.
एकनो आश्रय स्व, बीजानो आश्रय पर.
एकनुं फळ मोक्ष, बीजानुं फळ संसार.
बंनेनी धारा सतत–निरंतर जुदी ज वर्ते छे, कदी एक थती नथी.
जेने मोक्षनो उत्साह होय तेने बंधननो उत्साह केम होय? जेने व्यवहारनो उत्साह छे तेने
परभावनो उत्साह छे, तेने पराश्रयनो उत्साह छे, तेने संसारमार्गनो ज उत्साह छे. तेने आचार्यदेव
व्यवहारनो आश्रय छोडाववा माटे उपदेश आपे छे के अरे जीव! जे व्यवहारना आश्रये तुं मोक्षमार्ग माने छे
एवा व्यवहारनो आश्रय तो अभव्य पण करे छे,–जो व्यवहारना आश्रये तेनी मुक्ति नथी थती तो तारी
केम थशे? माटे व्यवहारना आश्रयनी बुद्धि तुं छोड ने शुद्धआत्मस्वरूप निश्चयने जाणीने तेनो ज आश्रय
कर...तेना आश्रये अवश्य तारी मुक्ति थशे. अनंता मुनिवरो शुद्धात्मानो आश्रय करी करीने मुक्ति पाम्या
छे, ने तुं पण मोक्षने माटे शुद्धात्मानो आश्रय कर! एम अनुग्रहपूर्वक संतोनो उपदेश छे.