Atmadharma magazine - Ank 206
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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मागशर : र४८७ : १प :
मोक्षना उपाय संबंधी
व्यवहारमूढ जीवनी मिथ्या मान्यताना प्रकारो
(पूज्य गुरुदेवना भिन्नभिन्न प्रवचनोमांथी तारवीने)

(१) *
पहेलां निश्चय न जोईए, पहेलां व्यवहार जोईए–एम व्यवहारमूढ जीवोनी मान्यता छे.
परंतु ज्ञानी कहे छे के निश्चय वगर कदी धर्मनी शरूआत थती नथी. निश्चयना आश्रये ज
धर्मनी शरूआत थाय छे. जेओ निश्चयना आश्रयनी ना पाडे छे तेओ धर्मनी ज ना पाडे छे
एटले के तेमना आत्मामां धर्मनी शरूआत थती नथी. कुंदकुंद प्रभुनुं वचन छे के
‘निश्चयनयाश्रित मुनिवरो...प्राप्ति करे निर्वाणनी.’– निश्चयनयनो आश्रय करनारा मुनिवरो
मोक्षनी प्राप्ति करे छे.
(र) * कोई एम कहे के पहेलां ‘समयसार’ नो अभ्यास न जोईए, पहेलां ‘महाबंध’ नो अभ्यास
जोईए, एटले के पहेलां शुद्धात्मानुं ज्ञान न करवुं पण पहेलां कर्मप्रकृत्तिनुं ज्ञान करवुं–एवी
तेनी मान्यता छे, ए मान्यता पण व्यवहारमूढतानो ज एक प्रकार छे. स्वने जाण्या वगर
परनुं यथार्थ ज्ञान थई शकतुं नथी, आत्माना शुद्ध स्वभावने जाण्या विना अशुद्धतानुं के
कर्मबंधनुं वास्तविकज्ञान थतुं नथी. जे जीव कर्मप्रकृति वगेरेने ज जाणवामां रोकाय छे पण
शुद्ध आत्माने जाणतो नथी तो ते जीव कर्मबंधनथी छूटी शकतो नथी. शुद्ध आत्माने जाणीने
तेना तरफ वळवुं ए ज बंधनथी छूटकारानो उपाय छे. समयसार शरू करतां आचार्यदेवे एम
कह्युं छे के हुं आत्माना निज वैभववडे एकत्व–विभक्त शुद्ध आत्मा देखाडुं छुं, अने तमे पण
स्वानुभववडे ते शुद्धात्माने जाणीने प्रमाण करजो.–आ रीते शुद्ध आत्माने जाणवानो ज
उपदेश कर्यो छे. परंतु एम नथी कह्युं के हुं कर्मबंधननुं वर्णन करुं छुं अने तमे पहेलां ते
कर्मबंधने जाणजो, पहेलां शुद्धआत्माने न जाणशो. आहा! शुद्ध आत्माना स्वरूपने तो
ओळखे नहि, ने ते शुद्ध आत्माने जाणवानो उद्यम करवाने बदले कर्म वगेरेनुं ज्ञान करवा
उपर जोर आपे तेने आत्मार्थी केम कहेवाय? जे आत्मार्थी होय,–आत्मानी जिज्ञासावाळो
होय, ते तो सर्व प्रकारे उद्यमवडे आत्माने जाणवानो प्रयत्न करे. मोक्ष–अधिकारमां
आचार्यदेव स्पष्ट कहे छे के जे जीव बंधनो छेद करतो नथी परंतु मात्र बंधना स्वरूपने
जाणवाथी ज संतुष्ट छे ते मोक्ष पामतो नथी. बंधना स्वरूपनुं ज्ञान ते मोक्षनुं कारण नथी;
परंतु बंधरहित स्वभावी एवो जे शुद्ध आत्मा, अने बंधन, ए बंनेने भिन्नभिन्न जाणीने
शुद्ध आत्मा तरफ वळतां बंधन छूटी जाय छे. आ रीते शुद्धआत्माने जाणीने तेने ग्रहवो ते ज
मोक्षनो उपाय छे.
(३) * कोई जीवो एम माने छे के ‘पहेलां अध्यात्म उपदेशनी जरूर नथी, पहेलां व्यवहारनो उपदेश
करवो जोईए. पहेलां व्यवहारचारित्र