Atmadharma magazine - Ank 206
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : २०६
अंगीकार करी ल्यो, पछी सम्यग्दर्शन थई जशे’–आवी मान्यतामां पण व्यवहारमूढता ज छे.
मोक्षमार्गनुं मूळ सम्यग्दर्शन छे, अने ते सम्यग्दर्शननुं निरूपण मुख्यपणे अध्यात्मउपदेशमां
ज छे. सम्यग्दर्शन वगर मोक्षमार्ग होतो ज नथी. सम्यग्दर्शन वगरनुं व्यवहारचारित्र तो
जीवे अनंतवार पाळ्‌युं छतां किंचित कल्याण न थयुं. सम्यग्दर्शन वगरनुं चारित्र (–जेने
अज्ञानी व्यवहारचारित्र कहे छे) ते तो मिथ्याचारित्र छे, मिथ्याचारित्र करतां करतां
सम्यग्दर्शन केम थाय?–न ज थाय. छतां ते व्यवहारचारित्रने जे सम्यक्त्वनुं कारण माने छे
तेने ते व्यवहारचारित्रना शुभरागमां मूढता छे, ते जीव शुभरागमां ज मूर्छाई गयो छे,
रागथी पार मोक्षमार्गने साधी शकतो नथी.
मोक्षमार्ग प्रकाशकमां नीचे मुजब शंका–समाधान द्वारा पं. टोडरमल्लजीए आ विषयनुं सरस
स्पष्टीकरण कर्युं छे–(पानुं र९४)
शंका :– द्रव्यानुयोगरूप अध्यात्म–उपदेश छे ते उत्कृष्ट छे, अने ते उच्च दशाने प्राप्त होय तेने ज
कार्यकारी छे, पण नीचली दशावाळाओने तो व्रतसंयमादिनो ज उपदेश आपवो योग्य छे!
समाधान :– जिनमतमां तो एवी परिपाटी छे के, पहेलां सम्यक्त्व होय पछी व्रत होय. हवे सम्यक्त्व
तो स्व–परनुं श्रद्धान थतां थाय छे तथा ते श्रद्धान द्रव्यानुयोगनो अभ्यास करतां थाय छे, माटे पहेलां
द्रव्यानुयोग–अनुसार श्रद्धान करी सम्यग्द्रष्टि थाय अने त्यारपछी चरणानुयोग अनुसार व्रतादिक धारण
करी व्रती थाय ए प्रमाणे मुख्यपणे तो नीचली दशामां ज द्रव्यानुयोग कार्यकारी छे; तथा गौणपणे, जेने
मोक्षमार्गनी प्राप्ति थती न जणाय तेने, पहेलां कोई व्रतादिनो उपदेश आपवामां आवे छे. माटे,
उच्चदशावाळाने ज अध्यात्मउपदेश अभ्यास करवा योग्य छे–एम मानी नीचली दशावाळाए त्यांथी
पराङमुख थवुं योग्य नथी.
शंका :– ऊंचा उपदेशनुं स्वरूप नीचली दशावाळाने भासे नहि.
समाधान :– अन्य तो अनेक प्रकारनी चतुराई जाणे छे अने अहीं (अध्यात्ममां) मूर्खपणुं प्रगट करे
छे ते योग्य नथी. अभ्यास करतां स्वरूप बराबर भासे छे. तथा पोतानी बुद्धि अनुसार थोडुंघणुं भासे छे.
परंतु सर्वथा निरूद्यमी थवाने पोषण करीए ए तो जिनमार्गना द्वेषी थवा जेवुं छे.
शंका :– आ काळ हलको (निकृष्ट) छे माटे उत्कृष्ट अध्यात्मना उपदेशनी मुख्यता करवी योग्य नथी.
समाधान :– आ काळ साक्षात् मोक्ष थवानी अपेक्षाए निकृष्ट छे पण आत्मानुभवनादि वडे सम्यक्त्वादि
होवानी आ काळमां मना नथी; माटे आत्मानुभवनादि अर्थे द्रव्यानुयोगनो अभ्यास अवश्य करवो.
जेने अध्यात्मनो उपदेश नथी गमतो ने एकलो व्यवहारनो उपदेश ज गमे छे ते जीव पण व्यवहार
मूढ समजवो. अध्यात्मउपदेशमां आत्मानुं परथी भिन्न शुद्धस्वरूप बतावीने तेनो आश्रय कराव्यो छे; अने ए
रीते शुद्ध स्वरूपनो आश्रय करवो ते ज कल्याणनुं मूळ छे, ते ज मोक्षनो मार्ग छे. जेने ते वात नथी रुचती ने
व्रतादिना शुभरागनी वात रुचे छे ते जीव व्यवहारमूढ–मिथ्याद्रष्टि छे, मोक्षना उपायने ते जाणतो नथी.
(४) *
कोई जीव एम कहे छे के “मोक्षमार्गमां पहेलेथी ज निश्चयनुं आलंबन करवानुं कहो छो, ते तो
कठण लागे छे, माटे पहेलां कांईक व्यवहारनुं आलंबन बतावो, ते व्यवहारनुं आलंबन
करतां करतां क््यारेक निश्चय प्रगटी जशे.”–एम कहेनारने पण व्यवहारमूढ ज समजवो.
बापु! अनंतकाळ तुं व्यवहारनुं अवलंबन कर तोपण तेनाथी निश्चय न प्रगटे. मोक्षनो मार्ग
तो शुद्धस्वभावना आश्रये होय, के रागना आश्रये होय? व्यवहारना आश्रये तो रागनी
उत्पत्ति थाय छे, तो तेमां मोक्षमार्ग केम होय?–न ज होय.
निश्चय वगरना एकला व्यवहारनी वात तो दूर रहो. निश्चयनी भूमिका सहित वच्चे जे व्यवहारनुं
अवलंबन आवी पडे छे तेने पण