Atmadharma magazine - Ank 206
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 18 of 21

background image
मागशर : र४८७ : १७ :
हेय समजीने आचार्यदेव कहे छे के अरे, खेद छे के आ व्यवहार वच्चे आवी पडे छे. ते
व्यवहारना विकल्पने ओळंगीने चिदानंदस्वरूपने शुद्धनयथी अनुभववुं–ते ज मोक्षमार्ग छे.
वच्चे व्यवहारनुं अवलंबन आवी पडे छे ते कांई मोक्षमार्ग नथी. अहा, ज्यां निश्चय साथे
वर्तता व्यवहारनुं अवलंबन पण मोक्षमार्ग नथी तो पछी निश्चय वगरना एकला व्यवहारनुं
अवलंबन तो मोक्षमार्ग क्यांथी होय? एवा व्यवहारना अवलंबनमां अटकेलो व्यवहारमूढ
जीव मोक्षमार्गने साधी शकतो नथी. जे जीव ते व्यवहारने हेय समजीने शुद्ध आत्मस्वभावने
पकडे छे–ते ज सम्यग्दर्शनादि मोक्षमार्गने साधे छे.
(प) * घणा जीवो एम माने छे के आपणे व्रत–पूजा वगेरे जे शुभक्रिया करीए छीए ते ज कर्या करो,
ते शुभ करतां करतां मोक्ष थई जशे, अथवा शुभनी परंपरा ते शुद्धतानुं कारण थशे.–आ
प्रकारनी मान्यतावाळा जीवो पण व्यवहारमूढतामां ज रहेला छे. भाई, शुभ अने शुद्ध–
बंनेनी जात ज जुदी, एक राग अने बीजी वीतरागता, एक बंधनुं कारण अने बीजुं मोक्षनुं
कारण; आ रीते शुभ अने शुद्ध बंने भावोनी जात ज एकबीजाथी विरुद्ध छे तोपछी शुभ ते
कई रीते शुद्धनुं कारण थाय?–कोई रीते न थाय. आम छतां जे व्यवहारमूढ जीवो शुभने
शुद्धतानुं कारण थवानुं मानीने ते शुभक्रियामां ज धर्मबुद्धिथी अटकी रह्या छे तेओ
शुद्धभावरूप धर्मने एटले के मोक्षमार्गने कदी पामी शकता नथी. मोक्षमार्गना खरा स्वरूपनी
तेमने खबर पण नथी. आवा जीवोने मोक्षमार्गसाधनमां कई रीते भूल छे–ते वात मोक्षमार्ग
प्रकाशकमां घणी सरस समजावी छे; त्यां कहे छे के–
आ जीवने व्रत–शीळ–संयमादिकनो अंगीकार होय छे, तेने ‘व्यवहारथी आ पण मोक्षमार्गनुं
कारण छे’ एवुं मानी ते उपादेय माने छे,–ए तो जेम पहेलां केवळ व्यवहारावलंबी जीवने
अयथार्थपणुं कह्युं हतुं तेम आने पण अयथार्थपणुं ज जाणवुं. ×× ए शुभोपयोगने बंधनुं ज
कारण जाणवुं पण मोक्षनुं कारण न जाणवुं; कारण के बंध अने मोक्षने तो प्रतिपक्षपणुं छे, तेथी
एक ज भाव पुण्यबंधनुं पण कारण थाय तथा मोक्षनुं पण कारण थाय एम मानवुं ए भ्रम
छे. व्रत–अव्रत ए बंने विकल्प रहित ज्यां परद्रव्यना ग्रहणत्यागनुं कांई प्रयोजन नथी एवो
उदासीन वीतरागशुद्धोपयोग छे ते ज मोक्षमार्ग छे. नीचली दशामां कोई जीवोने शुभोपयोग
अने शुद्धोपयोगनुं युक्तपणुं होय छे, तेथी ए व्रतादि शुभोपयोगने उपचारथी मोक्षमार्ग कह्यो
छे पण वस्तुविचारथी जोतां शुभोपयोग मोक्षनो घातक ज छे; आ रीते जे बंधनुं कारण छे ते
ज मोक्षनुं घातक छे–एवुं श्रद्धान करवुं. शुद्धोपयोगने ज उपादेय मानी तेनो उपाय करवो तथा
शुभोपयोग–अशुभोपयोगने हेय जाणी तेना त्यागनो उपाय करवो. ××
वळी, कोई एम माने छे के शुभोपयोग छे ते शुद्धोपयोगनुं कारण छे;– हवे त्यां जेम
अशुभोपयोग छूटी शुभोपयोग थाय छे तेम शुभोपयोग छूटी शुद्धोपयोग थाय छे,–एम ज
जो कारण–कार्यपणुं होय तो शुभोपयोगनुं कारण अशुभोपयोग पण ठरे; अथवा द्रव्यलिंगीने
शुभोपयोग तो उत्कृष्ट होय छे त्यारे शुद्धोपयोग होतो ज नथी; तेथी वास्तविकपणे ए बंनेमां
कारण–कार्यपणुं नथी. (जुओ, मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ रप९–र६०)
आम, व्यवहारमूढ अज्ञानी जीवो मोक्षना उपाय संबंधी कोई ने कोई प्रकारे मिथ्या मान्यता सेवता
होय छे, तेमांथी केटलाक प्रकारो अहीं वर्णव्या, अने यथार्थ मोक्षमार्ग साधवा माटे मुमुक्षुजीवे शुं करवुं ते पण
साथे साथे बताव्युं.
व्यवहारमूढजीव धर्मबुद्धिथी शुभभावने आचरीने स्वर्गमां तो जशे परंतु साथे मिथ्या मान्यताने
लीधे तेने संसारभ्रमण तो ऊभुं ज रहेशे...अने मिथ्यात्वनी प्रबळता थई जतां, अशुभभावमां जईने
अनेकविध हलकी गतिओमां पण परिभ्रमण करशे. माटे जेओ आवा दुःखमय संसारभ्रमणथी छूटवा चाहे
छे–एवा आत्मार्थी जीवो यथार्थ वस्तुस्वरूप समजी, व्यवहारनुं अवलंबन छोडी, शुद्धात्मस्वरूपनो आश्रय
करी मोक्षमार्गने आराधो.–एम आचार्यो– संतोनो उपदेश छे.