मागशर : २४८७ : ३ :
“भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवनो महा उपकार छे”
(२०१६ न मगसर वद अठमन प्रवचनमथ)
आ क्षेत्रना चरम जिनतणा सुपुत्र, विदेहना प्रथम जिनतणा सुभक्त,
भवमां भुलेल भवि जीवतणा सुमित्र, वंदु तने फरी फरी मुनि कुंदकुंद!
आत्मा ज्ञानस्वभाव छे; ते ज्ञानस्वभावनी प्राप्तिनुं नाम मुक्ति छे. माटे
मोक्षेच्छु जीवे ज्ञानस्वभावनी भावना भाववी. जुओ, आ मोक्ष माटेनी
भावना! ज्ञान–स्वभावनी भावना कहो, के सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी
आराधना कहो, ते ज मोक्षनो उपाय छे.
भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवना आचार्यपद–आरोहणनो आजनो दिवस छे.
आचार्य भगवान महा पवित्र हता, तेमनो घणो मोटो उपकार छे. सीमंधर
परमात्माना साक्षात् दर्शननो महा योग तेमने बन्यो हतो. आ भरतक्षेत्रना
जीवने विदेहक्षेत्रना तीर्थंकर परमात्माना साक्षात् दर्शन थाय–अने ते पण
आहारकलब्धि वगर, ए तेमनी महा पात्रता छे; भगवानना समवसरणमां,
भगवानना दिव्यध्वनिमां तेमने माटे ‘धर्मवृद्धि’ ना आशीर्वाद नीकळ्या, ए
कुंदकुंदप्रभुनी पवित्रतानी शी वात! महावीर भगवान अने गणधर भगवान
पछी मंगळ तरीके त्रीजुं नाम तेमनुं आवे छे. तेओ ‘परमेष्ठी’ हता. तेमनी
अलौकिक रहस्यो भर्या छे. तेमां कहे छे के हे मोक्षेच्छु! मोक्षने माटे तुं
ज्ञानस्वभावनी भावना भाव...तेमां अंतर्मुख थईने तेने जाण.