शिष्यने समजवा माटे प्रश्न ऊठे छे के हे स्वामी! देहथी भिन्न आत्माने जाण्यो होवा छतां अने तेने भावतां होवा
छतां धर्मात्माने पण फरीफरीने आ रागद्वेष केम थाय छे?–रागद्वेष रहित समाधि तरत केम थती नथी? देहादिथी
जुदापणुं जाण्या छतां तेमां रागद्वेष केम थाय छे? (एक तो आ अपेक्षानो प्रश्न छे.) बीजी अपेक्षा एम पण छे के
आत्मा देहथी भिन्न छे–एम जाण्या छतां अने तेनी भावना करवा छतां जीवने फरीने पण भ्रांति केम थाय छे?
एटले के फरीने पण ते अज्ञानी केम थई जाय छे?–एना उत्तरमां आचार्यदेव कहे छे के :–
पूर्वविभ्रमसंस्काराद्भ्रांतिं भूयोऽपि गच्छति ।। ४५।।
थवाने बदले हजी पण राग द्वेष थाय छे तेनुं कारण अनादिथी चाली आवती राग–द्वेषनी परंपरा हजी
सर्वथा तूटी नथी, तेथी तेना संस्कार चालु छे. तेथी तेने ते अस्थिरतारूपी भ्रांति छे; अथवा कोई जीवने
एकवार भेदज्ञान थया पछी पाछुं अज्ञान अने भ्रांति थई जाय छे तो ते जीव वर्तमानमां चैतन्यभावनाना
संस्कार भूलीने पूर्वना विभ्रमना संस्कार फरीने ताजा करे छे ते कारणे तेने भ्रांति थाय छे–एम समजवुं. आ
रीते फरीने जे जीव भ्रांति करे छे