Atmadharma magazine - Ank 207
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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पोष : २४८६ : ११ :
अज्ञानी बाह्यसंयोगोने सुखना दातार मानीने, ते संयोगमांथी सुख लेवा मांगे छे, पण संयोगो तो
सुख कदी आपता नथी, तेथी अज्ञानी छेतराय छे.
ज्ञानी बाह्यसंयोगोमां स्वप्नेय सुख मानता नथी, ते तो पोताना स्वभावने ज सुखनो सागर
जाणीने तेनो विश्वास अने तेमां एकाग्रता करे छे, ने ए रीते पोताना अतीन्द्रियसुखने भोगवे छे; ते
छेतराता नथी.
माटे हे भव्य! तारा आत्माने ज सुखनुं स्थान जाणीने तेनो ज विश्वास कर ने तेमां ज रमणता कर.
बाह्य पदार्थोमां सुखनी मान्यता छोड.–एम श्री पूज्यपादस्वामीनो उपदेश छे.
‘जगत ईष्ट नहि आत्मथी’–समकितीने पोतानो आत्मा ज ईष्ट छे, आत्मा ज वहालो छे, आत्मा
सिवाय बीजुं कांई जगतमां ईष्ट नथी, सुखरूप लागतुं नथी. समकिती चक्रवर्ती होय ने छखंडनुं राज–हजारो
राणीओ वगेरे होय छतां तेमां क्यांय मारुं सुख छे एम स्वप्नेय विश्वास करता नथी; ते बधा संयोगो तो
माराथी तद्न जुदा ज छे अने ते संयोगो तरफनी लागणीथी पण मने दुःख छे, तेमां क्यांय मारुं सुख नथी
सुख तो मारा चिदानंदस्वभावमां ज छे; आम स्वभावनो विश्वास करीने धर्मी वारंवार तेने ज स्पर्शे छे,–
तेमां वारंवार डुबकी मारीने शांतरसने वेदे छे. चैतन्यना विश्वासे ज्ञानीना वहाण भवसागरथी तरी जाय
छे–ने मोक्षमां पहोंची जाय छे.
।। ४९।।
वैराग्य समाचार
मोरबीना भाईश्री जगजीवन कासीदास महेता मागसर सुद १३ ना रोज
मोरबी मुकामे स्वर्गवास पाम्या छे. पू. गुरुदेव प्रत्ये तेमने घणो भक्तिभाव हतो.
वृद्धावस्था अने आंखोनी पूरी तकलीफ होवा छतां तेओ अवारनवार सोनगढ आवीने
गुरुदेवना प्रवचनोनो लाभ लेता; अने तेमना मनन माटे पू. गुरुदेवे पोताना पावन
हस्ते मंत्र लखी आपेल हतो के “सहज चिदानंद स्वरूप आत्मानुं स्मरण करवुं.” तेओ
प्रसन्नतापूर्वक तेनुं रटण करता. आध्यात्मिक शास्त्रोना स्वाध्याय–श्रवणनो तेमने घणो
प्रेम हतो. तेओ मोरबी मुमुक्षु मंडळना एक वडील तेमज कार्यवाहक कमिटिना सभ्य
हता. आ आत्मधर्मना लेखक ब्र. हरिभाईने परमकृपाळु गुरुदेवनुं चरणसान्निध्य प्राप्त
थवामां प्राप्त थवामां तेमनी प्रेरणा हती. स्वर्गवासना आगला दिवसे मोडी रात सुधी
उत्साहपूर्वक तेमणे तत्त्वश्रवण कर्युं हतुं. तत्त्व समजवानी जिज्ञासामां आगळ वधीने
तेओ पोतानुं कल्याण साधे, अने तेमना कुटुंबीजनो पण तेमना तत्त्वप्रेमनुं अनुकरण
करीने आत्महितना पंथे वळे... ए ज भावना.