Atmadharma magazine - Ank 207
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 13 of 21

background image
: १२ : आत्मधर्म : २०७
मोक्षने साधवानी कळा
अलौकिक मोक्षमार्गनी प्रसिद्धि करीने संतोए
मुमुक्षु जीवो उपर अलौकिक उपकार कर्यो छे
* स्वाश्रित मोक्षमार्ग *
आ समयसारनी र७रमी गाथामां मोक्षमार्गनो अबाधित नियम बतावीने आचार्यदेवे स्वाश्रयरूप
मोक्षमार्गनी प्रसिद्धि करी छे: हे जीवो! मोक्षनो मार्ग एक शुद्ध चैतन्यस्वभावना आश्रये ज छे; माटे
मोक्षार्थीए एवा स्वाश्रयरूप निश्चय वडे बधोय पराश्रित व्यवहार निषेधवा योग्य छे. अहा! चिदानंद
स्वभाव पण अलौकिक...अने तेना आश्रये थतो मोक्षमार्ग पण अलौकिक...ते अलौकिक मोक्षमार्गने प्रसिद्ध
करीने संतोए मुमुक्षु जीवो उपर महान उपकार कर्यो छे.
* सम्यग्द्रष्टिनी कळा *
मोक्षने साधवा माटेनी सम्यग्द्रष्टिनी कळा आचार्यदेवे आ समयसारमां बतावी छे. सम्यग्द्रष्टिने
स्वाश्रय भावमां मोक्षमार्गनी धारा निर्मळपणे चाली जाय छे. जेटलो पराश्रितभाव छे ते बधोय
सम्यग्द्रष्टिना विषयथी बहार छे. पराश्रये थतो भाव तो बंधनुं कारण होवाथी बाधक छे; ते बाधकभावमां
जे एकपणे वर्ते ते जीव मोक्षनो साधक केम होय? अने जे मोक्षनो साधक होय ते जीव बाधकभावमां
एकपणे केम वर्ते?–माटे मोक्षना साधक ज्ञानीधर्मात्मा पराश्रित भावोथी मुक्त ज छे, भिन्न ज छे, एटले शुद्ध
स्वभावना आश्रये ते पराश्रित एवा सघळाय व्यवहारने छोडीने मुक्ति पामे छे.–आ ज मोक्षने साधवा
माटेनी सम्यग्द्रष्टिनी कळा छे. आवी कळानुं नाम ज अपूर्व विद्या छे, ते ज वीतरागी विज्ञान छे.
* मोक्षने साधवा माटेनो महा सिद्धांत *
* एक तरफ अबंध–ज्ञातास्वभाव, तथा तेना आश्रये थतां सम्यग्दर्शनादि निर्मळ–अबंध परिणाम;
ते बंने अभेदपणे शुद्धनिश्चयमां आव्या.